बुधवार, 2 अक्तूबर 2013

सिर्फ राइट टू रिजेक्ट पूर्ण नहीं


सिर्फ राइट टू रिजेक्ट पूर्ण नहीं


 

सुप्रीम कोर्ट ने एक और अत्यंत महत्वपूर्ण फैसले मे सामाजिक राजनैतिक के उत्थान और मजबूती के लिए सर्कार के साथ सभी राजनैतिक डालो को एक नई सीख डी| जिसे सभी राजनैतिक दल अपने जागीर समझते थे|  सभी राजनैतिक दल, राजनैतिक प्रतिस्पर्धा और अधिक से अधिक सीट प्राप्त करने के लिए उसी जैसा प्रत्य्याई चुनाव के मैदान मे उतारते थे जो उस प्रत्य्याई पर बीस पड़े, अब वह प्रत्य्याई चाहे कितना भी बड़ा ईमानदार और  या बेईमान या फिर सजाफ्ता क्यों न हो क्योकि की सभी को चुनाव लादने की छूट थी, जिसका फायदा सभी राजनैतिक दल उठा रहे थे| सुप्रीम कोर्ट के नए फैसले से बहुत हद तक साफ़ सुथरी और अच्छे उमीदवारो को वरीयता तो मिलेगी पर कौन कब तक अच्छा है इस बात की कोई गारंटी नहीं हो सकती है, परिवर्तन संसार का नियम है जो इस पर भी लागू होगा| ऐसे मे सभी राजनतिक दलों को चाहिए की हो अधिक से अधिक उन लोगो को अपने राजनतिक दलों मे शामिल करे जिनके चरित्र साफ़ सुथरी हो, सभ्य, शिक्षित और सामजिक सेवा का भाव रखते हो, साथ ही उनमे राजनतिक इक्क्षा शक्ति हो| इस सम्बन्ध मे उस सभी समाज के लोगो को भी आशा की जानी चाहिए जिनके अंदर राजनैतिक और देश सेवा की भाव है आगे आकर सभी प्रमुख राजनैतक दलो का सदस्य बने ताकि उनको सभी राजनैतक दल अपना सुयोग्य प्रत्यासी बना सके| आज सभी राजनैतिक दलों मे एक सभ्य, शिक्षित और सामजिक सेवा का भाव रखने वाले सदस्यों की बहुत कम है जो की कि एक बड़ा कारण है, इसके कई कारण हो सकते है, इस विषय पर ना जाकर सिर्फ भारतीय राजनीति को सशक्त और सुद्रिढ बनाने के लिए हर रोज सुप्रीम कोर्ट के नए फैसले को लागू करने की जरुरत ना पड़े इससे बचना होगा| यदि सुयोग्य और सामाजिक रूप से शिक्षित उमीदवार होगा तो राइट टू रिजेक्ट की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी| और हर बार कानून थोपने की जरुरत नहीं पड़ेगी| एक सवाल यह भी है कि यदि किसी राजनैतिक दल का चुना हुवा प्रत्याशी चुनने के बाद गलत और अयोग्य हो जाय तो क्या होगा क्योकि अच्छाई और बुराई किसी के अंदर पहले से नहीं होती है, जैसा कि यह प्रकृतिक नियम है की समय किसी के लिए एक समान नहीं रहता और कभी कोई भी पूर्ण नहीं हो सकता है समय के साथ हर चीज बदल जाती है| अत: सिर्फ राइट टू रिजेक्ट काफी नहीं होगा, दूसरी समस्या आज तक भारतीय राजनैतिक चुनाव मे कभी भी सामान्यतः ५०% से ज्यादा वोट नहीं पड़ते है, ऐसे मे यह क्या मानना उचित होगा कि वोट ना करने वाले सभी वोटर राइट टू रिजेक्ट को सपोर्ट कर रहे है क्योकि राइट टू रिजेक्ट का वोट कभी भी किसी भी सदस्य के लिए हार या जीत को नहीं रोक सकेगा| अत: किसी ना किसी सदस्य का चुनना तब तय है, ऐसे मे राइट टू काल का भी कानून बना होगा, जो नया नहीं है जब लोकतंत्र मे नौकरी करने पर किसी गलत कार्य या आचरण के कारण उस नौकरी पाने वाले को निकाला जा सकता है तो फिर चुनाव जीत जाने पर उसी तरह उन्हें वापस भी बुलाया जा सकता है| परन्तु यह आचरण और प्रक्रिया कही उलटी ना पड़ जाय और देश का सारा समय सिर्फ चुनाव और उसकी व्यस्था बनाने मे ही, समय और आर्थिक नुकशान उठाना पड़े| अत: इस चुनावी सुधार मे कुछ और भी नियम तय करने होगे जैसे की चुनाव लड़ने के लिए उम्र की सीमा निर्धारित है तो फिर और चीजे जैसे शारीरिक, मानसिक, शैक्षणिक आदि योग्यता क्यों नहीं लागू की जा सकती है| जन्हा एक तरफ लोकतंत्र मे सामान्य नौकरी से लेकर आइ० ए० एस० और आइ० पी० एस० के लिए जब इतने कठिन परीक्षा तथा ट्रेनिग ली जा सकती है तो फिर देश के लोकतंत्र को चलाने और नियम बनाने वाले के लिए योग्यता और ट्रेनिग का निर्धारण आवश्यक क्यों नहीं किया जाय क्या इसके लिए भी आज नहीं तो कल सुप्रीम कोर्ट को कोई आदेश देना पडेगा|

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