शुक्रवार, 10 अक्तूबर 2014

स्वच्क्षता अभियान की बाधाए

आज पुरा  देश स्वच्छता की बात कर रहा है जोकि कोई नयी बात नहीं है हम सभी जब छोटे थे तो हमारे गुरुजन और अभिवावक हमें इसे एक संस्कार की तरह पालन करने की शिक्षा दिया करते थे| जिसमे ना केवल साफ़ सफाई या स्वच्छ रहने की बात सिखाई जाती ठी बल्कि हमें समाज में कैसे उठना, बैठना, चलना और व्यवहार करना है सिखाया जाता था जोकि हमारे जीवन की पहली शिक्षा होती थी और उसके द्वारा हम सामाजिक जीवन शैली और जीने की सबक/कला पाते थे| इस प्रकार हम अपने जीवन के दैनिक क्रिया - कर्म के साथ आज जीवन चला रहे है| आज समाज में इन्ही संस्कारों की कमी होती जा रही है जिससे आज अलग से हमें स्वच्क्षता के लिए प्रयास करने की जरुरत हो रही है| साफ़ – सफाई का यह क्रम नया नहीं है अगर नया कुछ है तो वह हमाँरी सोच, उसके क्रियान्वन की समग्र भूमिका और व्याहारिक अभाव  और उसमे आया बदलाव| आज इस बात को जब समाज का एक मुखिया कह रहा है तो यह और भी प्रसंगिक हो जाता है| आज के इस आधुनिक बदलते दौर में स्व्च्क्ष्ता, साफ़-सफाई में बहुत सी बाधाए है जिसे इतनी आसानी से सफल कर पाना बहुत मिश्किल है| समय के साथ साथ परिवार समाज में कई दुरिया और बढ़ाये  बनती गयी है जिससे यह काम और भी कठिन लगता है, सामजिक भेदभाव और कार्य करने के शैली कि यह कार्य एक विशेष संमुदाय/वर्ग द्वारा ही किया जाएगा और उसकी एक श्रेणी का विभाजन कर देना भी एक बाधा बनी| सरकारी सामाजिक प्रितीष्ठानो आदि में इसे बढ़ावा पैसा देकर कराने और नौकरी द्वारा ही करने के प्रक्रिया ने भी कम बाधित नहीं किया है| साफ़-सफाई, स्वच्क्षता जोकि सामजिक जीवन सैली  का मूल आधार है, वह व्यासायिक  व् अव्य्हारिक हो रहा है जिससे हम अपनी कर्म से अलग समझाने लगे| आज जब इसका परिणाम हमें दिखाई देने लगा है कि यह तो आने वाले समय में एक विशाल समस्या का रूप ले लेगा जिससे गंदगी और दुर्व्य्स्था  फैलेगी बलिक हमारा स्वास्थ  भी अनेक रोगों और बीमारियों से प्रभावित होगा तब जाकर सामजिक संगठनो व् सरकार ने इसे गंभीर रूप से लिया और अब हमें एक “स्वचक्ष-क्रन्ति”  की आवश्यकता है जोकि गावों, कस्बो, शहरों से लेकर महानगर देश-प्रदेश में एक अभियान के रूप में चलाना होगा| गाव कस्बो में तो अभी भी घर की स्त्रिया अपने घर-द्वार की साफ़ सफाई करती रहती है और पुरुष भी इस कार्य में अपना योगदान देते है इन जगहों पर इस कार्य को आसानी से कर सकते है क्योकि इन  जगहों पर अभी यह स्व्च्क्ष्ता का कार्य ज़िंदा रहते हुए अंतिम सासे ले रहा है परन्तु सबसे बड़ी बाधा नगरों और महानगरों में होगी जन्हा यह लगभग  मृत्यु हो गया है, लोगो को अपने घर की साफ़ सफाई के लिए ना तो समय है नहीं वह इसे सामाजिक रूप से मानते है किसी तरह किराये के लोगो द्वारा कार्य कर जीवन यापन कर रहे है| दुसरा बड़ा कारण नगरों, महानगरों की सामजिक व्यवस्था जिसमे घर के बनावट से लेकर गलियों, नालियों, सडको और सार्वजनिक जगहों के निर्माण का कोई रूप रेखा नियम और क़ानून व्याहारिक नहीं है, जो भी नियम क़ानून बने है वह केवल कागजो के लिए बने है| जो की इस कार्य में एक बड़ी बढ़ा बने हुए है|  हमें यदि इस स्वचक्ष-क्रन्ति को व्याहारिक रूप से चलना है तो इन बाधाओ को दूर करना होगा कुछ सख्त क़ानून या तो बनाने होंगे या फिर बने कानूनों को सख्ती से पालन करना होगा| इसके पहले सरकार/समाज को एक सुद्रिड इन्फ्रासटकचर देना होगा जिसमे कूड़ा के निस्तारण, जल निकासी के साधन, गलियों और सडको का समुचित रख रखाव व् निर्माण तथा नियमों को सख्ती के साथ पालन करना समलित है, तभी हम इस स्व्च्क्षता के अभियान को असली रूप दे सकेंगे| पुरातन समय में स्व्च्क्षता जीवन का एक अभिप्राय था जो इस आधुनिक युग में एक समस्या बन गयी है जिसमे सामाजिक और आर्थिक समस्या के साथ साथ शिक्षा भी एक बाधा है| हमारी शिक्षा और संस्कार हमें इस स्वच्क्षता से दूर कर दिया है, शुम सभी जानते है कि स्व्च्कश्ता से ही स्वास्थ्य बनेगा और स्वस्थ व्यक्ति में ही बुधि- चिंतन  का विकास होगा  तभी एक स्वस्थ – शशक्त समाज का निर्माण होगा| आज हम सभी चाहते है की हमारा बच्चा इंग्लिश माध्यम से शिक्षा ग्रहण करे और सामाजिक आर्थिक रूप से आगे बढे परन्तु ऐसे में वह    केवल शिक्षा तो शायद ले रहा पर उसमे ज्ञान और संस्कार का अभाव रह जा रहा है जोकि सामाजिक जीवन शैली के लिए बहुत जरूरी है अत: हमें प्राइमरी शिक्षा से लेकर स्नातक शिक्षा तक स्व्च्क्षता-संस्कार का एक विषय भी अनिवार्य रूप से पढाने के लिए प्रयोजन बनाना होगा नहीं तो सफाई के अलावा भी बहुत सी संस्कारिक मूल्यों के कमी से और बहुत सी चीजे आने वाले समय में सामाजिक समस्या बन सकती है| हालकि स्नातक स्तर पर एन०  एन०  एस० और एन० एन० सी० जैसी संस्थाए इस कार्य में अपना योगदान देती है पर यह पर्याप्त नहीं है इस दिशा में और भी कार्य किये जाने की जरूररत है| हम केवल भाषण और प्रतिकात्म्क रूप से इस कार्य को पूरा नहीं करा सकते है, इसे एक जन आन्दोलन के रूप में निरंतरता के साथ करना होगा, इस कार्य में छोटा- बड़ा, उच्च -नीच का भेद- भाव भी हटाना होगा, यह दायित्व केवल कुछ सिमित और प्रसंगिक लोगो द्वारा ही नहीं होगा इसमे छोटे बड़े सभी लोगो चाहे वह कितने बड़े पद पर अधिकारी हो या  राजनेता सभी को सामान रूप से भागीदार बनाना होगा| इसके साथ ही सरकार और सामजिक संगठनों को साफ़-सफाई के साथ एक सुन्दर और आकर्षण माडल विकसित कर लोगो को दिखाना होगा ताकि उसका अनुसरण कर वह समाज में स्वचक्षता के महत्व को समझ सके और उसे ग्रहण कर सके| जब ऐसे विकसित स्थान जो दिखने में एक धार्मिक स्थान की तरह से लगेगे तो उस स्थान को किसी भी व्यक्ति में गंदगी करने की साहस नहीं रहेगी बल्कि उसकी स्वच्क्षता और सुंदरता देखकर वह उसे भी स्वचक्ष रखने में अपना योगदान देगा|

सोमवार, 29 सितंबर 2014

स्वच्क्ष, स्वस्थ और शशक्त भारत का निर्माण


(स्वच्क्षता के लिए पहला प्रयास हम गन्दगी ना फैलाये)

आज स्वच्क्षता एक अभियान बन रहा है जिसे हम सभी को एक क्रान्ति के रूप में स्वीकार करते हुए “स्वचक्ष- क्रान्ति” का नाम दे देना चाहिए| स्वच्क्षता का मतलब सिर्फ साफ़ सफाई और गंदगी हटाना भर नहीं है बल्कि हमें अपने मन को भी स्वच्क्ष रखना होगा तभी यह क्रान्ति असली रूप ले सकेगी| हम सभी जानते है की स्वच्क्ष वातावरण से ही हम स्वस्थ रह सकते है और जब हम स्वस्थ होंगे तो हमारी मष्तिक भी स्वस्थ रहेगा और हमारे बुधि का विकास और सोचने की शक्ति भी बढेगी तब हम एक सकरात्मक सोच के साथ समाज देश का भला कर सकेंगे| अत: स्वस्थ मन के साथ इस सामजिक स्वचक्ष-क्रन्ति”  के शुरवात करने की आज आवश्यकता है|  कोई भे कार्य मनुष्य द्वारा ही किया जाता है| यह भी सच है की इस कार्य को हम छोटा-बड़ा या उछ-नीच में नहीं बात सकते है इस कार्य को समाज के हर व्यक्ति चाहे वह किसी पद पर कार्य कर रहा हो कम से कम अपने आस पास के जगहें को साफ़ सफाई के लिए तैयार रहे अन्यथा यह समस्या कभी भी हल नहीं की जा सकती है, आज इसी कारण देश के सर्वोच्य पद पर आसीन मुखिया  को इस कार्य को करने और करने में योगदान के लिए आवाहन करना पड  रहा है, हमें इस बात को स्वीकार करना होगा, कहते है जब जागो तभी सबेरा तो यह सुरुवात  आज से शुरू कर दे तो अच्छा होगा| हमें इस बात के शपथ लेनी होगी की हम स्व्च्क्षता के अभियान के भागीदार बनेगे और अपने आस पास के जगहों को स्वंम साफ़ रखेगे| जिस प्रकार स्वस्थ मन-मस्तिस्क में एक स्वस्थ रचनात्मक विचार जन लेता है ठीक उसी प्रकार स्वस्थ समाज में ही एक सामरिक विकास, प्रगति और खुशहाली हो सकती है| स्वच्क्षता को सामाजिक बोझ ना समझे यह भी जीवन का एक हिस्सा है जैसे अन्य क्रिया कलाप हमारे जीवन के लिए जरूरी है| स्वच्क्षता के लिए पहला प्रयास तो हम यह कर सकते है की अपने आस – पास गंदगी ना फैलाये और ना ही दूसरो को फ़ैलाने दे, इससे साफ़-सफाई का कार्य स्वत: आसान हो जाएगा| घर, समाज को यदि हम धार्मिक स्थल की तरह समझे तो स्वच्क्षता का विचार स्वंम ही मन मस्तिक में आ जाएगा| हम अपने घर से स्वच्क्ष-क्रांति की सुरुवात करे, फिर अपने आस पास के जगहों को साफ़ सफाई के लिए प्रयास  करना होगा, घर के कूड़े और अन्य अनुपयोगी वस्तुओ के लिए एक स्थायी जगह बनायी जाय जहा यह इकठठा होकर निस्तारण हेतु भेजा जा सके| सबसे बड़ी समस्या हमें स्वच्क्षता में सार्वजनिक जगहों के लिए हो सकती है, जैसे गली, मोहल्ला, सडके, पार्क और अन्य जगहे व्यासायिक बाज़ार आदि, इसके लिए हमें सामूहिक प्रयास करना पडेगा क्योकि यह किसी एक व्यक्ति के वस् की बात नहीं है हा हम इसमे इतना सहयोग अवश्य दे सकते है कि हम स्वंम इन जगहों को गंदा ना करे और कूड़ा करकट जमा ना हो देने और दूसरो को भी इसके लिए प्रेरित करे की यह जगह हम सभी का है जिसे हम सभी साफ़ और स्वच्क्ष रखना है| जब कभी हम विकास, प्रगति और समृधि की बात करते है तो इसमे स्वच्क्षता से ही पहला झलक का आभास होता है आप किसी भी सामाजिक समारोह, धार्मिक स्थल या पर्यटक  स्थल से इस बात का आभास लगा सकते है कि जब हम उण स्थानों को ठीक से आकलन करे तो सभी कुछ साज-सज्जा में साफ-सफाई के बाद ही उसका चमक और दमक दिखाई देगा| अत: आज समय की मांग है की यदि हमे २१वी सड़ी का स्वागत करना है तो स्वच्क्षता के साथ इसकी सुरुवात करे और उन्नति देशो में शामिल होने के लिए अपने समाज और देश विकास के लिए तन-मन धन के साथ समर्पित हो जाय| जो आज हमारा है वह कल किसी और का होगा औए उसके बाद किसी और का, अत: हम जो भी कार्य विकास के लिए करे वह स्वच्क्ष, सुन्दर और सुध्रिड हो| जिससे आने वाली पीढी को हम एक स्वच्क्ष, स्वस्थ और शशक्त भारत दे सके|
डा० विष्णु स्वरुप, म०मो०मा०यु०टी०
 

गुरुवार, 13 फ़रवरी 2014

सहभागीता और पारस्परिक विचार-विमर्श का महत्व



सहभागीता और पारस्परिक विचार-विमर्श का महत्व

आज के आधुनिकता और तकनिकी भरे माहोल और व्यस्त जीवन के कारण  मनुष्य हर मोड़ पर अनेकों मुश्किलों और समस्यायों से घिरा रहता है| ऐसे में मनुष्य अपने सिमित ज्ञान और संसाधनों के कारण हर मुश्किल और समस्याओ से परेशान रहता है| बहुत सारे समस्याओ की जानकारियों के बावजूद वह उन समस्याओ का हल नहीं ढूढ़ पाता है और जल्दबाजी तथा परेशानी के कारण बहुत सी गलती कर जाता है जो उसे और मुश्किल में डाल देती है| इसके पीछे जो सबसे बड़ा कारण आज है वह समाज और अपने आस पास के लोगो, सहयोगियो से दूर रहना| संकोच और अहम् के कारण आज व्यक्ति ना तो एक दुसरे से नजदीकीयां रख रहा है, न तो सहभागीता रख रहा है और न पारस्परिक विचार-विमर्श करना चाहता है, जिसके कारण ऐसी बहुत सी चीजे और बाते है जो बिना ज्ञान और पैसे के प्राप्त हो सकती है, जिसके लिए आप पैसा खर्च करने के बाद भी नहीं प्राप्त कर सकते है, और वह समस्या जो बड़ी आसानी से हल हो सकती है आप वंचित रह जाते है| शेयरिंग एक ऐसा अस्त्र है जो बड़े बड़े कार्य और मुश्किल को आसान बना सकता है| शेयरिंग का अर्थ है कि आप अपने आस पास के जीवन को समझे, आस पास के रहने वालो, मिलाने जुलने वालो और खासकर जिन्हें आप अपना विशेष इष्ट-मित्र या दोस्त समझते है उनसे अपने हर उस सुख और दुःख को बाटें, हों सकता है की आप उनसे अपने चीजों को साझा करे तो हों सकता है ऐसा करने से आप को कोई ऐसी राह और दिशा मिल जाय जिसके लिए आप अत्यधिक परेशान और तनाव में रह रहो हों और वह क्षण  भर में दूर हों जाय| यह सर्वथा सत्य है की हर व्यक्ति के अंदर अच्छा व बुरा गुण होता है चाहे वह छोटा हों या बड़ा साथ ही हर व्यक्ति अनुभव के साथ-साथ बहुत कुछ ज्ञान और समझ रखता है| अनपढ़ और गंवार व्यक्ति भी समाज के ठोकरों और दूसरों के कार्यों से बहुत कुछ सीख लेता है जो आप और हम पढ़ लिखकर और डिग्री पाने के बाद भी नहीं जन सकते अहै| एक कहावत अत्यंत ही सत्य है की घुमकड़ व्यक्ति हर परिस्थिति और और मुश्किलों का सामना बड़े ही आसानी से कर लेता है| इसके अलावा प्रकिर्ति ने सभी को सुख और दुःख का भागीदार बनाया है हों सकता है उस सुख और दुःख को पाने और दूर करने में उसका अनुभव आप के काम आ जाय| कभी कभी बड़ी से बड़ी मर्ज़ का इलाज़ छोटी चीजों से हों जाता है जिसे आप बहुत ही कठिन और असम्भव समझ रहें होते है| सहभागिता और पारस्परिक संबंध आप को अपनो से दूर रहने पर भी मिल सकती है, जैसे की आप कही बाहर गए है और आप को अपनी ज्ञान और जानकारी के बाद भी किसी चीज की आवशयकता पड़ गए तो यदि छोटा बनकर किसी कि मदद मांग लेते है तो आप की बड़ी से बड़ी समस्या हल हों जायेगी| आप को विश्वाश नहीं होगा की आप जब छोटा बनकर किसी की मदद मंगाते है तो मदद करने वाला अत्यंत ही प्रसन्न और धन्य समझता है, और उससे से अधिक कही  दिल को तसल्ली और प्रसन्ता तब मिलती है जब आप किसी की मदद करते हों यदि आप इसका अनुभव करना चाहते हों तो किसी भूले हुए व्यक्ति को रास्ता बताकर कुछ दूर उसको पहुचा दे, आप स्वंय महशुश करंगे की आप को कितनी खुशी मिलतीं है| खुशी खोजने और छीनने से नहीं मिलाती उसे पाने के लिए आप को दूसरों के मदद करने की आवश्यकता होगी| ऐसा करने से आप खुद ही पाओगे की लोग आप की मदद करने के लिए खुद ही चले आयेंगे| दुनिया में किसी भी चीज का कोई शार्ट कट नहीं है, जो है वह मात्र एक सुविधा के रूप में है और अस्थाई है| सफलता के लिए हमें सदैव पाजीटिव बनना होगा  और एक अच्छा इंशान भी बनना होगा, साथ ही नयी गांधी  की सोच को अपनाए अच्छा करे, अच्छा सुने और अच्छा देखे | स्वाभिमानी बने अभिमानी नहीं, ज्ञान को बाटें रखे नहीं, दुखी: ना हों अपने से ज्यादा दुखी को देखे, दूसरों की मदद करे आप की मदद करने वाला आप के पीछे होगा| हम क्या कर सकते है उस पर चले नाकि दूसरे कैसे चल रहें है उसका अनुशरण करे, आप की परिस्थिति आप को मालुम है दूसरे को नहीं वही करे जो मन और दिल कहता हों सत्य का साथ दे, कर्म हम कर सकते है, समय हमारे वश में नहीं है और भाग्य 

गुरुवार, 30 जनवरी 2014

swaroop: ब्रांड राजनितिक नयी प्रयोग “आप”

swaroop: ब्रांड राजनितिक नयी प्रयोग “आप”: ब्रांड राजनितिक   नयी प्रयोग “आप” जा ब्रांड नाम का प्रयोग सभी राजनैतिक पार्टिया किसी ना किसी रूप में करती रही है और कर रही है, परन्तु आज...