सोमवार, 29 सितंबर 2014

स्वच्क्ष, स्वस्थ और शशक्त भारत का निर्माण


(स्वच्क्षता के लिए पहला प्रयास हम गन्दगी ना फैलाये)

आज स्वच्क्षता एक अभियान बन रहा है जिसे हम सभी को एक क्रान्ति के रूप में स्वीकार करते हुए “स्वचक्ष- क्रान्ति” का नाम दे देना चाहिए| स्वच्क्षता का मतलब सिर्फ साफ़ सफाई और गंदगी हटाना भर नहीं है बल्कि हमें अपने मन को भी स्वच्क्ष रखना होगा तभी यह क्रान्ति असली रूप ले सकेगी| हम सभी जानते है की स्वच्क्ष वातावरण से ही हम स्वस्थ रह सकते है और जब हम स्वस्थ होंगे तो हमारी मष्तिक भी स्वस्थ रहेगा और हमारे बुधि का विकास और सोचने की शक्ति भी बढेगी तब हम एक सकरात्मक सोच के साथ समाज देश का भला कर सकेंगे| अत: स्वस्थ मन के साथ इस सामजिक स्वचक्ष-क्रन्ति”  के शुरवात करने की आज आवश्यकता है|  कोई भे कार्य मनुष्य द्वारा ही किया जाता है| यह भी सच है की इस कार्य को हम छोटा-बड़ा या उछ-नीच में नहीं बात सकते है इस कार्य को समाज के हर व्यक्ति चाहे वह किसी पद पर कार्य कर रहा हो कम से कम अपने आस पास के जगहें को साफ़ सफाई के लिए तैयार रहे अन्यथा यह समस्या कभी भी हल नहीं की जा सकती है, आज इसी कारण देश के सर्वोच्य पद पर आसीन मुखिया  को इस कार्य को करने और करने में योगदान के लिए आवाहन करना पड  रहा है, हमें इस बात को स्वीकार करना होगा, कहते है जब जागो तभी सबेरा तो यह सुरुवात  आज से शुरू कर दे तो अच्छा होगा| हमें इस बात के शपथ लेनी होगी की हम स्व्च्क्षता के अभियान के भागीदार बनेगे और अपने आस पास के जगहों को स्वंम साफ़ रखेगे| जिस प्रकार स्वस्थ मन-मस्तिस्क में एक स्वस्थ रचनात्मक विचार जन लेता है ठीक उसी प्रकार स्वस्थ समाज में ही एक सामरिक विकास, प्रगति और खुशहाली हो सकती है| स्वच्क्षता को सामाजिक बोझ ना समझे यह भी जीवन का एक हिस्सा है जैसे अन्य क्रिया कलाप हमारे जीवन के लिए जरूरी है| स्वच्क्षता के लिए पहला प्रयास तो हम यह कर सकते है की अपने आस – पास गंदगी ना फैलाये और ना ही दूसरो को फ़ैलाने दे, इससे साफ़-सफाई का कार्य स्वत: आसान हो जाएगा| घर, समाज को यदि हम धार्मिक स्थल की तरह समझे तो स्वच्क्षता का विचार स्वंम ही मन मस्तिक में आ जाएगा| हम अपने घर से स्वच्क्ष-क्रांति की सुरुवात करे, फिर अपने आस पास के जगहों को साफ़ सफाई के लिए प्रयास  करना होगा, घर के कूड़े और अन्य अनुपयोगी वस्तुओ के लिए एक स्थायी जगह बनायी जाय जहा यह इकठठा होकर निस्तारण हेतु भेजा जा सके| सबसे बड़ी समस्या हमें स्वच्क्षता में सार्वजनिक जगहों के लिए हो सकती है, जैसे गली, मोहल्ला, सडके, पार्क और अन्य जगहे व्यासायिक बाज़ार आदि, इसके लिए हमें सामूहिक प्रयास करना पडेगा क्योकि यह किसी एक व्यक्ति के वस् की बात नहीं है हा हम इसमे इतना सहयोग अवश्य दे सकते है कि हम स्वंम इन जगहों को गंदा ना करे और कूड़ा करकट जमा ना हो देने और दूसरो को भी इसके लिए प्रेरित करे की यह जगह हम सभी का है जिसे हम सभी साफ़ और स्वच्क्ष रखना है| जब कभी हम विकास, प्रगति और समृधि की बात करते है तो इसमे स्वच्क्षता से ही पहला झलक का आभास होता है आप किसी भी सामाजिक समारोह, धार्मिक स्थल या पर्यटक  स्थल से इस बात का आभास लगा सकते है कि जब हम उण स्थानों को ठीक से आकलन करे तो सभी कुछ साज-सज्जा में साफ-सफाई के बाद ही उसका चमक और दमक दिखाई देगा| अत: आज समय की मांग है की यदि हमे २१वी सड़ी का स्वागत करना है तो स्वच्क्षता के साथ इसकी सुरुवात करे और उन्नति देशो में शामिल होने के लिए अपने समाज और देश विकास के लिए तन-मन धन के साथ समर्पित हो जाय| जो आज हमारा है वह कल किसी और का होगा औए उसके बाद किसी और का, अत: हम जो भी कार्य विकास के लिए करे वह स्वच्क्ष, सुन्दर और सुध्रिड हो| जिससे आने वाली पीढी को हम एक स्वच्क्ष, स्वस्थ और शशक्त भारत दे सके|
डा० विष्णु स्वरुप, म०मो०मा०यु०टी०