सोमवार, 14 मार्च 2016

समपर्ण ही प्यार है



समपर्ण ही प्यार है
समाज का हर सामाजिक प्राणी जिसमे जीवन है वह प्यार करना और पाना चाहता है| यह एक प्रकीर्तिक देन है मनुष्य तो इसके भाव से कही ना कही अभी प्रभावित होता ही रहता है परन्तु यह प्यार मानव जीवन में कई रूपों में हमें मिलता है| जो मानव जीवन के समय, अवष्था और सोंच पर निर्भर करता है| हम इसे जोर जबरजस्ती से ना तो इसे पा सकते है ना कर सकते है| मानव जीवन प्यार के बिना सदैव ही अधूरा और उदास रहता है इसी कारण से जब हम किसी आकर्षित किये जाने वाले चोजो या विपरीत लिंग को देखते है तो हमें प्यार की अनुभूती होने लगती है| प्यार की शुरुवात मानव जीवन में बचपन से ही शरू होकर पुदापे तक बने रहती है बस इसके रूप स्वरुप में परिवर्तन होते रहते है| प्यार के बीच भाव और समर्पण का होना अतिआवश्यक है इसके बिना प्यार अस्थायी और अधूरा या यो कहे स्वार्थ में होता है| जब हम बचपन के दौर से गुजरते है तो यह एक माँ के भाव और समर्पण का ही परिणाम है की वह अपने बच्चे से या बच्चा अपने माँ से प्यार करने लगता है, इसी प्रकार जब हम अलग अलग प्रस्थितियो में अलग अलग भाव के साथ एक दूसरे के प्रति जैसा भाव-समर्पण रखते है हमें वैसा ही अनुभूति प्यार के रूप में होने लगती है| दो विपरीत लिंगों के बीच का भी प्यार भाव के कारण ही होता है पर जब इसमे समर्पण जुड जाती है तो वन एक स्थायी प्यार का रूप ले लेती है| हम मानव जीवन में प्यार के कई रूप देख सकते है जिसमे माँ-बच्चे, पिता-पुत्र, भाई-बहन और पति-पत्नी का है| हम हर अवस्था में भाव के साथ यदि समर्पण रखते है तभी प्यार स्थयी होने के साथ बना रह सकता है| किसी भी स्वार्थ और गलत भाव के साथ किया गया प्यार कभी  भी सताए और फलीभूत नहीं हो सकता है| प्यार हमें मानव जीवन को एक डोर से बंधे राकहने एक अहम भूमिका निभाती है जिससे हमारा परिवार ही नहीं, समाज और देश के प्रति भी प्यार देशभक्ति के रूप में प्रकट होती है| समर्पण के बिना हम कभी भी किसी से प्यार नहीं कर सकते है और ना ही हमें प्यार मिल सकता है| समर्पण वह भाव है जो हम मानव को एक सेतु से जोड़े रहता है, प्यार वह एह्शाश है जिसमे हम उस प्राणी या वास्तु से बिछडने या खोने मात्र से दुःख का अनुभूति होती है| शायद इसी दुःख या गम को हम एक सच्चा प्यार कह सकते है| हम प्यार को बड़ी ही आसानी से अनुभव कर सकते है की जब हम किसी चीज को पसंद करने लगते है और जब वह चीज हमसे दूर हो जाती है या गम हो जाती है तो दुःख का एहसास होता है| प्यार के अनुभाव में स्वार्थ का कोई स्थान नहीं है हम प्यार के डोर से तबतक बंधे रहते है जबतक स्वार्थ जैसी कोई चीज इसके बीच नहीं आती है| समर्पण क्या है यह अवश्य ही परिभाषित होनी चाहिए, अन्य चीजों के तरह ही समर्पण वह भाव या अनुभूती है जिसमे हम एक संस्कार के साथ धर्म का पालन करते हुए एक दूसरे के प्रति अपना विशवास रखते है उसके शुख-दुःख सहित अन्य अवसरों में एक दूसरे के साथ सहयोग करते है| जैसा की माँ अपने नवजात पुत्र को लालन-पालन से लेकर उसके भलन-पोषण में करती है और यही धार्मिक-संस्कारित भाव का समर्पण माँ और बच्चे के बीच प्यार के रूप में अनुभूति देने लगता है| यह एहसास माँ हर दम करती रहती है जैसे ही उसके बच्चे को कोई दुःख-कष्ट होता है प्यार उसके चहरे पर दुःख के रूप में ही प्रदर्शित होने लगता है| यह उसी समर्पण के कारण ही होता है जो एक माँ उसे बिना अपने जीवन के सुखो का प्रवाह किये उसके लालन-पालन में लगाती है| प्यार केवल दो विपरीत लिंग के मानव में ही नहीं होता है यह हर मानव को एक दूसरे के बीच हो सकता है यदि समर्पण का भाव हममे हो जाय| दो विपरीत लिंगों के बीच का आकर्षण और मन: इक्षा मात्र से प्यार संभव नहीं है इअसमे भी समर्पण का भाव होना जरूरी है तभी यह सफल होता है| एक सच्चा प्यार तभी अमर होता है जब उसमे समर्पण हो जैसा की हम सभी जानते है ताजमहल उसी समर्पण का रूप है जो ना रहते हुए भी उसे ज़िंदा राकहने के लिए इस रूप में बनी है और सभी के लिए एक मिशाल है|हम जब अपनो से प्यार करंगे, तो परिवार से प्यार होगा और फिर वह एक सामाज के लिए भी प्यार बनेगा| और यही प्यार हम देश के लिए भी कर सकते है जब हम एक राष्ट्भाव और देशभक्ति के साथ देश के लिए कुछ समर्पण करे जिसका रूप देश के विकास और देश की आन-बाण और सुरक्षा से जुदा होगा जिसमे हमारा योगदान होगा तो हमें स्वत: ही राष्ट प्रेम हो सकेगा|

गुरुवार, 18 फ़रवरी 2016

प्यार हंसी और खुशी जीवन के तीन अनमोल पल



प्यार हंसी और खुशी जीवन के तीन अनमोल पल
किसी के भी जीवन के ये तीन अनमोल चीजे है जिसे वह जोर जबरजस्ती नहीं पा या छीन सकता है| हम इसे चाहकर या धनवान बनकर भी खरीद नहीं सकते है या यो कहे कि ये तीन चीजे बिकाऊ नहीं है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी| मानव जीवन को स्वस्थ और निर्मल, निरोग रखने के लिए भी इसकी ही आवश्यकता होती है| यदि हम निरोग और स्वस्थ रहना चाहते है तो इसे हमें जीवन में पाना होगा, अन्यथा हम कभी स्वस्थ नहीं रह संकेंगे| इन तीन चोजो में प्यार वह पल का एहशाश है जिससे हम पाना तो चाहते है पर इसे हम दूसरों में ढूढना चाहते है, जबकि प्यार वह अभिब्यक्ति है जिसे हमें दूसरे में ढूढने की जरुरत नहीं जब कोई सुंदरता का प्रतिक होता है तो हमें चाहत उसे देखने, पाने और छूने की होती है वह किसी भी रूप में हो| प्यार पाने के लिए प्यारा होना पडेगा फिर प्यार  अपने आप मिल जाएगा, आप स्वं सुन्दर लगे चाहे वह मन, तन, या वाणी से हो, सुंदरता हमें अपने व्यक्तित्व, बोलचाल के मृदभाषी, सहयोगी, आपस का सामंजस्य और भावना को छू लेना हो हो तो प्यार आप को मिल ही जाएगा|  जब आप अपने आप से एक बार प्यार करने की आदत बना लेते हो तो फिर दूसरे का प्यार आप को मिलाने से कोई नहीं रोक सकता है| प्यार केवल दो विपरीत लिंगों के बीच  ही नहीं जिसमे केवल सेक्स या शारीरक रूप से आनंद पाना ही प्यार है यह तो एक प्रकिर्ति की दी हुयी एक अनमोल तोहफा हर सामाजिक प्राणी के लिए होती है और यह की प्राय: प्यार की परिभाषा हम उसी रूप में जानते पहचानते है| जिस प्रकार विपरीत लिंग के प्रति हमारा आकर्षण और चाहत उसे एक सुन्दररूप में पपने की होती है ठीक उसी प्रकार से अन्य के प्रति भी तभी आकर्षित और चाहत पा सकते है चाहे उससे हमरा सम्बन्ध किसी भी रूप में हो जब हम सुन्दर बने और दिखे| सच्चा प्यार हमें तब अधिक समझ में आता  है जब हम उससे बिछड़ने और दूर होते है और उसके बिना हमें दर्द या गम का एह्शाश होता है वास्तव में प्यार एक समर्पण का भाव है जिसमे कोई भी अपना या बेगाना लगाने लगे और हमें दुःख का एहसाश लगाने लगे| यदि आप बिना किसी भेदभाव या लालच के एक दूसरे के लिए समर्पित हो तो प्यार होने ही लगता है| दूसरी अनमोल चीज खुशी हमें तभी मिलेगी जब हम प्यार किसी से करने लगते है और वह अच्छा और अपना लगाने लगता है जन्हा प्यार अभिब्यक्ति है ति खुशी वह एह्शाश है जिसे हम शब्दों में लिखा जा सकता है यह मन को शांति और सुख देता है और हमें प्यार में खुशी मिलती है| दूसरे खुशी हम तब महशुश करते है जब हमें किसी कार्य में कड़ी मेहनत और इमानदारी के साथ  सफलता मिलती है  तब हमें सबसे ज्यादा खुशी मिलती है जो प्यार के खुशी भी बड़ी लगती है और यह स्थायी भी रहती है| जब खुशी किसी अन्य को बिना दुख दिए मिले तो वह खुशी अनमोल रहती है| जिस खुशी में आत्म संतोष हो वह ही सच्ची खुशी है| हमें कुशी को किसी तराजू में छोटा या बड़ी कम और ज्यादा से कभी नहीं करनी चाहिए नहीं तो हम बाद में दुखी होना पद सकता है खुशी एक परसपर और निरन्तर की प्रक्रिया है और यह प्राणी को जीवन में जुडता रहता है दुःख के बिना हम खुश का एह्शाश कभी भी नहीं कर सकते है अत: कभी जीवन में दुख आती है तो इसका मतलब है बहुत ही जल्द हमें खुशी भी प्राप्त होने वाली है| इसी कारण कहा गया है की सुख – दुःख जीवन के दो पहलू है जिससे हमें खुशी का एहसास होता है| तीसरी अनमोल चीज हंसी जो आत्म जीवन की सबसे अचूक दवा है जिससे जीवन के सारे दर्द दुःख समाप्त हो जाते है, हँसाने के लिए हमें किसी चीज या किसी व्यक्ति या पैसे की जरुरत नहीं होती है बस हमें वह पल और समय की जरूररत होती है जिसे चाहकर, देखकर, सोचकर या बनकर मिलती है| हँसाने के लिए इजाजत की जरुरत नहीं हमें जब भी हंसी अंदर से लगे खुलकर हँसे चाहे वह पल अपने लिए हो या किसी और के लिए| इसके लिए मन का स्वस्थ और विचार का उत्तम होना जरूरी है हमें किसी के दुःख, अवसर या मजबूरी का मजाक बना कर कभी नहीं हँसना चाहिए क्योकि जो चीजे दूसरों को दुःख दे वह हमें खुशी कैसे दे सकती है| हमें जीवन में हसने केबहुत से अवसर देते है जिसमे सफलता एक है, सफल होने पर हमें स्वं में खुशी के साथ हंसी का एह्शाश देती है| जीवन के कुछ ऐसे पल और परिस्थितिय होती है जो अपने आप ही हंसी दे जाती है कुछ ऐसे सुविचार जीवन में बनते है जो हंसी का भाव देते है| किसी के प्रति दुविचार्य बेबशी पर हमें नहीं हँसना चहिये| हँसाने के लिए अपने अंदर हमें सुवुचार और अभिसिंचित कार्य कल्पना जो हमें हंशी दे लाने चाहिए दूसरे मजाक, दूसरे के प्रति सद्भभाव से कल्पना लाना हमें खुशी देती है| किसी कार्य का अप्रस्चित, आश्चर्य तरीका और जोक की कला, रोमांश के आदर्श तरीके, चहरे के भाव या अन्य माध्यम जिससे किसी को दुःख ना हो को करके भी हम हंसने के पल दूढ   सकते है| हँसाने से मन स्वस्थ और शरीर पुष्ट रहता है| जीवन के सफल जीने के ये तीन अनमोल रत्न ही है जो हमें निरोग रख सकते है| हम इन अनमोल चीजों को देख नहीं सकते है ना इसका मोल कर सकते है बस इसे एक दूसरे को भाव के साथ देकर शेयर कर एहसास कर सकते है| जिस प्रकार अपनी इक्षाओं के लिए भगवान के पास पूजा द्वारा पाना चाहते है, रोगी होने पर डॉक्टर के पास उपचार के लिए जाते है और दुवा आशीर्वाद या दवा से स्वस्थ औत ठीक हो जाते है ठीक उसी प्रकार इन तीन अनमोल प्यार, हंसी और खुशी को अपने संस्कार, सम्मान और कार्यों के समर्पण द्वारा पा सकते है|