शुक्रवार, 27 अक्तूबर 2017

प्यार हंसी और खुशी जीवन के तीन अनमोल पल

प्यार हंसी और खुशी जीवन के तीन अनमोल पल

किसी के भी जीवन के ये तीन अनमोल चीजे है जिसे वह जोर जबरजस्ती नहीं पा या छीन सकता है| हम इसे चाहकर या धनवान बनकर भी खरीद नहीं सकते है या यो कहे कि ये तीन चीजे बिकाऊ नहीं है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी| मानव जीवन को स्वस्थ और निर्मल, निरोग रखने के लिए भी इसकी ही आवश्यकता होती है| यदि हम निरोग और स्वस्थ रहना चाहते है तो इसे हमें जीवन में पाना होगा, अन्यथा हम कभी स्वस्थ नहीं रह संकेंगे| इन तीन चोजो में प्यार वह पल का एहशाश है जिससे हम पाना तो चाहते है पर इसे हम दूसरों में ढूढना चाहते है, जबकि प्यार वह अभिब्यक्ति है जिसे हमें दूसरे में ढूढने की जरुरत नहीं जब कोई सुंदरता का प्रतिक होता है तो हमें चाहत उसे देखने, पाने और छूने की होती है वह किसी भी रूप में हो| प्यार पाने के लिए प्यारा होना पडेगा फिर प्यार  अपने आप मिल जाएगा, आप स्वं सुन्दर लगे चाहे वह मन, तन, या वाणी से हो, सुंदरता हमें अपने व्यक्तित्व, बोलचाल के मृदभाषी, सहयोगी, आपस का सामंजस्य और भावना को छू लेना हो हो तो प्यार आप को मिल ही जाएगा|  जब आप अपने आप से एक बार प्यार करने की आदत बना लेते हो तो फिर दूसरे का प्यार आप को मिलाने से कोई नहीं रोक सकता है| प्यार केवल दो विपरीत लिंगों के बीच  ही नहीं जिसमे केवल सेक्स या शारीरक रूप से आनंद पाना ही प्यार है यह तो एक प्रकिर्ति की दी हुयी एक अनमोल तोहफा हर सामाजिक प्राणी के लिए होती है और यह की प्राय: प्यार की परिभाषा हम उसी रूप में जानते पहचानते है| जिस प्रकार विपरीत लिंग के प्रति हमारा आकर्षण और चाहत उसे एक सुन्दररूप में पपने की होती है ठीक उसी प्रकार से अन्य के प्रति भी तभी आकर्षित और चाहत पा सकते है चाहे उससे हमरा सम्बन्ध किसी भी रूप में हो जब हम सुन्दर बने और दिखे| सच्चा प्यार हमें तब अधिक समझ में आता  है जब हम उससे बिछड़ने और दूर होते है और उसके बिना हमें दर्द या गम का एह्शाश होता है वास्तव में प्यार एक समर्पण का भाव है जिसमे कोई भी अपना या बेगाना लगाने लगे और हमें दुःख का एहसाश लगाने लगे| यदि आप बिना किसी भेदभाव या लालच के एक दूसरे के लिए समर्पित हो तो प्यार होने ही लगता है| दूसरी अनमोल चीज खुशी हमें तभी मिलेगी जब हम प्यार किसी से करने लगते है और वह अच्छा और अपना लगाने लगता है जन्हा प्यार अभिब्यक्ति है ति खुशी वह एह्शाश है जिसे हम शब्दों में लिखा जा सकता है यह मन को शांति और सुख देता है और हमें प्यार में खुशी मिलती है| दूसरे खुशी हम तब महशुश करते है जब हमें किसी कार्य में कड़ी मेहनत और इमानदारी के साथ  सफलता मिलती है  तब हमें सबसे ज्यादा खुशी मिलती है जो प्यार के खुशी भी बड़ी लगती है और यह स्थायी भी रहती है| जब खुशी किसी अन्य को बिना दुख दिए मिले तो वह खुशी अनमोल रहती है| जिस खुशी में आत्म संतोष हो वह ही सच्ची खुशी है| हमें कुशी को किसी तराजू में छोटा या बड़ी कम और ज्यादा से कभी नहीं करनी चाहिए नहीं तो हम बाद में दुखी होना पद सकता है खुशी एक परसपर और निरन्तर की प्रक्रिया है और यह प्राणी को जीवन में जुडता रहता है दुःख के बिना हम खुश का एह्शाश कभी भी नहीं कर सकते है अत: कभी जीवन में दुख आती है तो इसका मतलब है बहुत ही जल्द हमें खुशी भी प्राप्त होने वाली है| इसी कारण कहा गया है की सुख – दुःख जीवन के दो पहलू है जिससे हमें खुशी का एहसास होता है| तीसरी अनमोल चीज हंसी जो आत्म जीवन की सबसे अचूक दवा है जिससे जीवन के सारे दर्द दुःख समाप्त हो जाते है, हँसाने के लिए हमें किसी चीज या किसी व्यक्ति या पैसे की जरुरत नहीं होती है बस हमें वह पल और समय की जरूररत होती है जिसे चाहकर, देखकर, सोचकर या बनकर मिलती है| हँसाने के लिए इजाजत की जरुरत नहीं हमें जब भी हंसी अंदर से लगे खुलकर हँसे चाहे वह पल अपने लिए हो या किसी और के लिए| इसके लिए मन का स्वस्थ और विचार का उत्तम होना जरूरी है हमें किसी के दुःख, अवसर या मजबूरी का मजाक बना कर कभी नहीं हँसना चाहिए क्योकि जो चीजे दूसरों को दुःख दे वह हमें खुशी कैसे दे सकती है| हमें जीवन में हसने केबहुत से अवसर देते है जिसमे सफलता एक है, सफल होने पर हमें स्वं में खुशी के साथ हंसी का एह्शाश देती है| जीवन के कुछ ऐसे पल और परिस्थितिय होती है जो अपने आप ही हंसी दे जाती है कुछ ऐसे सुविचार जीवन में बनते है जो हंसी का भाव देते है| किसी के प्रति दुविचार्य बेबशी पर हमें नहीं हँसना चहिये| हँसाने के लिए अपने अंदर हमें सुवुचार और अभिसिंचित कार्य कल्पना जो हमें हंशी दे लाने चाहिए दूसरे मजाक, दूसरे के प्रति सद्भभाव से कल्पना लाना हमें खुशी देती है| किसी कार्य का अप्रस्चित, आश्चर्य तरीका और जोक की कला, रोमांश के आदर्श तरीके, चहरे के भाव या अन्य माध्यम जिससे किसी को दुःख ना हो को करके भी हम हंसने के पल दूढ   सकते है| हँसाने से मन स्वस्थ और शरीर पुष्ट रहता है| जीवन के सफल जीने के ये तीन अनमोल रत्न ही है जो हमें निरोग रख सकते है| हम इन अनमोल चीजों को देख नहीं सकते है ना इसका मोल कर सकते है बस इसे एक दूसरे को भाव के साथ देकर शेयर कर एहसास कर सकते है| जिस प्रकार अपनी इक्षाओं के लिए भगवान के पास पूजा द्वारा पाना चाहते है, रोगी होने पर डॉक्टर के पास उपचार के लिए जाते है और दुवा आशीर्वाद या दवा से स्वस्थ औत ठीक हो जाते है ठीक उसी प्रकार इन तीन अनमोल प्यार, हंसी और खुशी को अपने संस्कार, सम्मान और कार्यों के समर्पण द्वारा पा सकते है| 

सामाजिक निर्माण में परिवार की भूमिका

सामाजिक निर्माण में परिवार की भूमिका

     हमारा समाज पुरातन काल से ही अत्यन ही संगठित रहा है जहा सामाजिक धार्मिक संस्कारित और परपर सहयोग की भावना समाज के हर वर्ग के परिवार में उसके उत्थान और संरचना में सहायक रही है| यही कारण है कि पुरातन परिवारों में एक जुटता और संयुक्तरूप से साथ जीने – मरने और प्यार-मोहबत कूट-कूट कर भरा रहता था| परिवार के सदस्यों के बीच एक दूसरे के प्रति समर्पण की भावना ही इसका मुख कारण था की परिवार संगठित और सुदृण हूआ करता था, परिवार के मुखिया मुखिया की भूमिका राजा की तरह निस्वार्थ रूप से हर सदस्य के लिए सामान था जो एक बड़ा कारण था की हर सदस्य उसकी इज्जत और आदर का भाव रखता था| संयुक्त परिवार में रहने वाले कभी भी दुःख और कठनाई का अनुभव नहीं करते थे और खुशी के अवसर हमेशा दुगनी रहती थी चाहे वह कोई अवसर हो| संस्युक्त परिवार का मुखिया चाहे वह परुष/महिला कोई भी वह परिवार के हर सुख और दुःख को पहले अपना समझता था और परिवार के हर सदस्य का पूरा ध्यान रखता था परिवार में स्वत्रंतता समान रूप से हुआ करती थी जिसमे कोई भेदभाव नहीं होते थे| परिवार का मुखिया ही  निर्णय के लिए अधिकृत था और उसका निर्णय ही अंतिम होता था| सभी एक साथ थे तो सभी का सुख  दुःख सभी के लिए एक सामान था| इस प्रकार एक परिवार के रूप में जो संस्कार और धर्म बनते थे उसी का पालन परिवार के हर सदस्य के लिए अनिवार्य था|, और परिवार को साथ लेकर चलने के लिए योग्यता अनुसार मुखिया का चुनाव होते रहते थे| 

      इस प्रकार किसी कार्य को संपन्न करने के लिए किसी अन्य की जरुरत परिवार को नहीं होती थी क्योकि आपस में कार्य को बाट कर लेने से सभी को आसानी होती थी, जब हाथ अधिक होते है तो कार्य आसान हो ही जाते है और इस प्रकार परिवार का हर सदस्य अपनी योग्यता और सामर्थ्य के अनुसार परिवार को चलाने में अपनी भूमिका निभाता था, आदर, धर्म और संस्कार हर सदस्य को बाधे रखता था जिसके कारण अंतर का भाव की कम और ज्यादा कार्य या क्षमता परिवार के सदस्य के रूप में कभी प्रशन नहीं थे| लेकिन यह सच है की परिवर्तन युगों के लिए होते है, और आज वह संयुक्त परिवार का दृश्य समाज से ओझिल होता जा रहा है और एक बड़ा सामाजिक परिवर्तन हो रहा है जिसमे संयुक्त परिवार के कुछ कमी और बुराई आज उसके विनाश का कारण बन रहे है| यह समय की जरुरत बनाती  जा रही है| पहले समाज में जनसंख्या और आबादी कम थी, चीजे आसानी से प्राप्त थी, सुविधा की जरुरत कम थी, यदि परिवार का एक सदस्य भी कमाता था तो परिवार की जरुरत पूरी आर लेता था, हम प्रकिर्ति के नजदीक थे और उसी पर निर्भर रहते थे, जरुरत के अनुसार आज हमें वह समय अब बदलने को मजबूर कर रहा है| आज का संयुक्त परिवार एक पीढ़ी पिता-पुत्र का ही देखने को मिल रहा है और भविष्य में परिवार पति -पत्नी या एकल भी हो सकता है जिस तेजी से हम बदल रहे है, ठीक उसी प्रकार से हमारे संस्कार भी बदल रहे है हम आज की पीढ़ी में १-२ पीढ़ी के सदस्यों को पहचान भी नहीं रहे है, और यह भी सच होगा की पिता – पुत्र  को भी ना पहचाने इसमे कोई अनोखी नहीं है| जिस तेजी से परिवार का विघटन हुआ उससे कही ज्यादा तेजी से हमारे संस्कार विघटित हो रहे है इसका एक उदाहरण है कि पहले लोग एक दूसरे सदस्य को आमने – सामने से मिलकर श्रधा और भाव के साथ गले मिलते थे या पैर छू कर आशीर्वाद लेते थे महिलाये तो खासकर गले मिलकर भाव-विभोर होने के साथ प्यार – गम के आंशु तक निकल जाती थे वह इस लिए की कही वो एक दूसरे से कभी बिछुड  ना जाय या फिर कब मिले| 

      प्यार और स्नेह का भाव दिलो में थे लोग समर्पण का भाव एक दूसरे के लिए रखते थे परन्तु आज क्या है हम धीरे धीरे उस श्रधा  भाव को भूलते जा रहे है आज श्रधा का भाव हेल्लो कह कर पूरा होने लगे है तथा लोग आशीर्वाद के नाम पर सर ही हिला देते है| यह भी सच है की समय की मांग अनुसार मनुष्य ने अपने जीवन-यापन को बदलने को मजबूर किया है, अब किसी भी संयुक्त परिवार को एक अकेला व्यक्ति नहीं चला सकता,  साधन और अवश्यकताए बढती जा रही है, जिसे पूरा करने में मनुष्य का सारा समय निकल जता है, साधन ने लोगो के बीच दुरिया बढ़ा दी है मनुष्य अपनी या परिवार  की जरुरत पूरी करने के लिए परिवार से दूर होता  जा रहा है ऐसे में संयुक्त परिवार का महत्त्व समाप्त होने लगे है| संयुक्त परिवार के इसी विघटन के नाते आज समाज में अनेक प्रकार के बुराई और भ्रष्टाचार फ़ैल रहे है| इन सभी में जो सबसे बड़ी चीज विघटन का कारन है एक दूसरे के प्रति इर्ष्या , अहंकार और सा असंतोष परिवार के साथ साथ समाज और देश के लिए घातक हो रहा है| मनुष्य समय के इस परिवर्तन में अपने आप को इतने तेजी से बदलना छह रहा की उसे दूसरे की परवाह नहीं कि उसके स्वंम फायदे के लिए किसी अन्य का नुकशान हो रहा है| और इस सब में दूसरा जो कारण है वो परिवारां में असफलता का मिलना जिसे मनुष्य अपने  को दोषी ना मानते हुए इसके लिए अन्य को दोषी समझता है और फिर दूसरे अवगुण जैसे इर्ष्या, कलह, और हीन भावना का जन्म होते जा रहा है और हम और तेजी से विघटन की ओर जा रहे है| इसके साथ उंच-नीच का भाव और एक दूसरे को नीच्गा दिखाना, दूसरों के सफलता असे इर्ष्या करना और असफलता पर खुशी मनाना आपसी घमंड और कलह ने सनुक्त परिवार को बिखराव के तरफ ले जा रहा है|

      इस संभी के लिए हमारी सांसारिक शिक्षा और संस्कार में कमी ही मुख्या कारण है, हमारे परिवार तो तेजी से शिक्षित हो रहे है पान्तु उतने ही तेजी से हमारे संस्कार में कमी हो रही है| इन सभी के लिए नहं और आप कही ना कही से जिमेद्दर है क्योकि तेजी से आगे बढ़ाने की छह में अपने –पराया के अंतर को बढ़ावा दे रहे है परिवार को अपने तक ही समझ रहे है तो फिर हम दूसरों से कैसे अछे का उम्मीद कर सकते है, ताली तो दोनों हाथ के बजाने से बजेगी, हम जबतक एक दूसरे के शुख-दुःख व् सफलता – असफलता के लिए एक साथ नही निभेंगे तबतक हम सामाजिक विकास न तो अपना कर सकते है ना ही समाज का| ऐसे में किसी देश समाज और परिवार में कैसे खुशहाली और सुख की कामना कैसे  कर सकते है| और जब तक हम खुश और सुख नहीं रहंगे  तबतक ना तो परिवार का निर्माण कर सकते है ना हे समाज का| स्वस्थ परिवार के साथ ही एक स्वस्थ समाज का निर्माण हो सकता है| समाज के विघटन एक और बड़ा कारन हमारी अशिक्षा और आर्थिक तगी भी है, यह बहुत हद तक सच भी है क्योकि हमारा समाज अन्य समाज से अताधिक पिछडा और गरीब रहा है हम अपने रूढवादी परम्परा और कार्य को बदलना नहीं चाहते थे और नाही अपना निवास स्थान और व्यपार जिसके कारण समय ने हमें काफी पीछे कर दिया. हमने समय के अनुसार शिक्षा के महत्व को भी नहीं समझा और जब तक यह बात समझ आती देर हो चकी थी| पर अब पछताने से कुछ नहीं हो सकता है यह भी सच है हमने अब बदलने की चाह कर ली है आज नहीं तो कल हमें इसमे सफलता अवश्य मिलेगी बस सब्र से हमें धीरे धीरे आगे की ओर बढ़ाते रहना है और उस ऊँचाई को भी अवश्य पाना है जिसके लिए हम संकल्पित  है| हमें अपने धार्मिक, संस्कार और परस्पर आपसी प्रेम-समर्पण की भावना के साथ संयुक्त परिवार के अछाईयो  को ग्रहण करते हुए पहले एक स्वस्थ परिवार का निर्माण करना होगा तभी हम एक स्वस्थ समाज की कल्पना कर सकते है| किसी भी परिवार में संबंधो का सामंजस्य एक दूसरे के प्रति आदर भाव, और सबसे बड़ा समर्पण जो प्रेम का भाव देता है वह  एक आदर्श परिवार स्थापित कर सकता है और फिर  एक आदर्श समाज और राष्ट का निर्माण हम कर सकते  है|
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