हमारी शिक्षा और
हमारा समाज
वर्तमान परिवेश में शिक्षा को लेकर
हम और हमारा समाज जंहा खड़ा है वह हमारे शिक्षा के स्वरुप का ही देन है| हम, हमारा
समाज और देश आज तेजी के साथ विकास अवश्य कर रहा है पर हम इस विकास के यात्रा में
शिक्षा के स्वरुप और वर्तमान ब्यवस्था के कारण उस विकास की यात्रा में साथ नहीं चल
पा रहे है, हमें खास कर शिक्षित युवा को
जन्हा होना चाहिए| इसका मूल कारण हमारी शिक्षा का अ-ब्यवस्था और सही तरीके से
प्रबंधन ना होना है| यह सच ही की आज का युवा शिक्षित हो रहा है पर वह शिक्षा मात्र
डिग्री पाने तक ही समिति है| जिसका सबसे बड़ा दुष्प्रभाव समाज में कई रूपों
में पड़ रहा है जिसमे से एक सबसे कारण बेरोजगारी है जिसका राजीनीतिकारन भी खूब हो
रहा है जो समाज में एक राजनीति के लिए एक मोहरा बन चुका है| इसके अतिरिक्त
बहुत सारे दूसरे कारण भी है जो प्रत्क्ष्य या अप्रतक्ष्य रूप से समाज को प्रभावित
कर रहे है| समाज
में संस्कार, ब्यवहार और शालीनता को भी वर्तमान शिक्षा ने ही कही ना कही और किसी ना किसी रूप में प्रभावित
किया है|
हमारे समाज में आज चोरी, डकैती,
उग्रवाद, और
आंतकवाद बड़ी ही तेजी से बढ़ रहा है जिसमे भी वर्तमान शिक्षा की ब्यावस्था और
उपयोगिता की भी कही ना कही भूमिका है| शिक्षा के नयी व्यवस्था और परिवर्तन का जितना प्रभाव समाज में और खासकर देश
के युवा में दिखना औरपड़ना पढ़ना चाहिए था वह कही भी दिखाई नहीं देता| इसका अर्थ यह
कदापि नहीं है कि शिक्षा के स्वरुप और ब्यावस्था में परिवर्तन नहीं हुए पर उसका
प्रभाव जितना समाज में मिलना चाहिए वह वर्तमान शिक्षा के स्वरुप और ब्यावस्था के
परिवर्तन से प्राप्त नहीं हो रहे है| इसके बहुत से कारण हो सकते है| एक सामाजिक विचारक,लेखक और
चिन्तक के रूप में कुछ कारणों पर प्रकाश डालना एक सुझाव है| आज समाज- देश में आधुनिकरण और मशीनीकरण के साथ
डिजिटलीकरण का परिवर्तन बड़ी तेजी से हो रहे है इसी के साथ साथ देश में शिक्षा को
भी तेजी से बदला जा रहा है पर यह पूर्णत: पर्याप्त और असफल प्रतीत हो रहा है जिसका
सबसे बड़ा उदाहरण शिक्षित युवा बेरोजगार का देश में बढ़ना है| देश में शिक्षा के
स्वरुप और ब्यावस्था का सही रूप से परिवर्तन नहीं करना है, देश में केवल डिग्री दी
जा रही और तेजी के साथ बेसिक शिक्षा से
लेकर डिग्री स्तर और तकनीकी व् मेडिकल शिक्षा का प्रसार और बढ़ावा दिया जा रहा है
पर उसके गुणवत्ता और उपयोगिता पर कभी परिचर्चा और बहस समाज नहीं करना चाहता है|
जिसका कारण है हमारा युवा शिक्षित होते हुए भी बेरोजगार और बेकार है| ऐसा भी नहीं
है की देश में नौकरी और स्वरोजगार या नया तरीके जीवन यापन करने के लिए उपलब्ध नहीं
है या फिर हमारा युवा कर नहीं सकता है| पर उसके लिए समुचित परिवेश और सन-संधानो की कमी
और जानकारी का अभाव है|
वर्तमान शिक्षा स्वरुप और ब्यावस्था में बेसिक से डिग्री तक के शिक्षा में ४०-५०% कोर्से सैलबस के अनुरूप और अनुपुक्त है,या
उस कोर्से से सम्बंधित या उसकी उपयोगिता नहीं के बराबर है| इस विषय पर गंभीर रूपसे
चिंतन किये जाने की आवश्यकता है| कोर्से के निर्धारण
में सामाजिक,
सभ्यता और संस्कार का पूर्णरूप से अभाव है किसी भी कोर्से में सामाजिक जीवन की
उपयोगिता,
सामाजिक ब्यवहार और राष्ट्रवाद का अभाव है| हमने जिस तेजी के साथ बेसिक शिक्षा से लेकर
डिग्री स्तर के कोर्से में परिवर्तन किया उसमे आधुनिकरण और अंग्रेजी ने उन सभी
विषयो को काफी पीछे छोड़ दिया जो सामाजिक विकास का मूलमंत्र थे| हम यदि अपने
गुरुकुल के शिक्षा के स्वरुप को देखे तो हम यह पायंगे की सामाजिक जीवन की उपयोगिता, सामाजिक
ब्यवहार और राष्ट्रवाद के लिए उन पाठ्यकर्म में आज से कही ज्यादा परिणाम मिलते थे| हम आज जिस
तकनिकी और प्रबंधन के विकास के लिए पाठ्कर्मो को परिवर्तित्त करना चाह रहे है,
उसके लिए यदि हम अपने पौराणिक ग्रन्थ जैसे रामायण और गीता में लिखे विषयो का गहन
अध्यन और विचार करे तो उससे कही ज्यादा
जानकारी पा सकते है और सीख सकते है जिसका परिणाम हमें ब्यावारिक रूप से भी देखने
और समझाने को मिल सकता है| किसी
भी समाज के विकास के लिए संयम, अनुशाशन और समय पालन सबसे बड़ा मूल मंत्र है आज
भी हम जब किसी बड़े विकसित संस्थान को देखे तो संयम, अनुशाशन और समय पालन ही उसका सनसे
बड़ा मूलमंत्र है| उस
विकसित संस्थान में संस्थान के लिए क्रमश: समय पालन के लिए बायोमेट्रिक हाजिरी
लगाई जा रही है, सभी कार्य ऑनलाइन सुचना के माध्यम से किये जा रहे जो संयम बताता है तथा सूचनाओ को बारी - बारी से मिलना
और क्रमवार चलना हमें अनुशाशन बनाये रखने के लिए बाध्य कर रहा है| इस सभी
कार्यों में हम स्वत: संस्कार और ब्यवहार में भी डाल सकते है| आज आधुनिकरण
या ऑनलाइन प्रक्रिया सफलता के लिए बनायी जा रही है वह हमारे गुरुकुल शिक्षा के ही
स्वरुप की देन है जो आधुनिक और परिवर्तित होकर विकास के नए द्वार खोल रहा है इस
सभी प्रक्रिया में अपराध और घुशखोरी में निशिचित ही रोक लग रहा है|
आज समाज में शिक्षा और शिक्षा के
विकास के साथ उसकी उपयोगिता के बारे में फिर से और नए रूप से बदलाव किये जाने की
जरुरत है| जिसमे सबसे पहला शिक्षा सभी के लिए अनिवार्य बने, शिक्षा का
सरलीकरण किया जाय, शिक्षा में व्यहारिकता और संस्कार का प्रधुर्भाव बनाया जाय, शिक्षा के कई
स्तर निर्धारित किये जाय, बेसिक
शिक्षा के बाद छात्र को विषय विशेष शिक्षा के चुनाव किये जाने हेतु उसके मानसिक, बौद्धिक और
मनस्थिति का मनोवैज्ञानिक रूप से टेस्ट करने के बाद ही विषय विशेष का चुनाव का
अधिकार दिया जाना उचित होगा इससे एक तरफ जन्हा बिना किसी उद्देश्य और कार्य के लिए
दी जा रही डिग्री के शिक्षा खर्च की बचत होगी दूसरी तरफ सही ब्यक्ति सही शिक्षा के
चुनाव के साथ बेहतर से बेहतर परिणाम देश के विकास में देगा|
आज समाज और देश में एक ऐसी शिक्षा
व्यवस्था बनाए जानी चाहिए जिसमे युवा को उसके मानसिक, शारीरिक और
इक्षाशक्ति के समावेश के साथ सामाजिक जीवन की उपयोगिता, सामाजिक
ब्यवहार और राष्ट्रवाद का समावेश हो, युवा सिर्फ शिक्षा पाकर सरकारी नौकरी/रोजगार की
इच्छा ना रख्खे बल्कि वह दूसरों को नौकरी/रोजगार देने की बात सोचे और एक दूसरे से
कंधा से कंधा मिलाकर समाज, देश
और राष्ट्र निर्माण की बात सोचे| शिक्षा के स्वरुप को ऐसे निर्माण किये जाने की
आवश्यकता है जिसके पाठ्यक्रमों में महापुरषो और मार्गदर्शको के चरित्र और विचारों की
समावेश ब्यवहारिक रूप से मिले सिर्फ उन्हें कंथाकन और परिचय के लिए ना रख्खे जाय| हम राम और कृष्ण
जैसे अन्य के कथानक और चरित्र को पढकर उनके संस्कारो और व्याहारिक कार्यों का
उपयोग एक शिक्षित सामाजिक विकास में कर सकते है| आज का युवा शिक्षित होकर समरसता, सम्मान और
स्वाभिमान को भूलकर एकाकी, अनादर और
अभिमान को अपना रहा है|
समाज और देश को शिक्षा को विकास का
माध्यम बनाना होगा| हम
शिक्षा को बेसिक स्तर से ही कैटेगोरी कर के आगे बढ़ाना चाहिए जिससे हमें बच्चे के
बेसिक स्तर की शिक्षा देते समय ही यह तय करना होगा की कौन सा बच्चा अपनी रूचि
अनुसार किस क्षेत्र में जा सकता है, उसे उसी तरह के विषय तय करने का अवसर मिले
जिससे वह प्रारम्भ से ही अपने रूचि अनुसार विषय विशेष की उच्च शिक्षा का कोर्से
चुनकर अपने भविष्य और कैरिएर के आगे बढ़ सके| इससे समय और शिक्षा का ब्यर्थ खर्च दोनों में
बचत हो सकेगी| हमें
इसके नुकशान का रूप ऐसे देखने को मिल सकता है कि एक छात्र तकनिकी और मेडिकल की
शिक्षा का विशेष विषय महारथी होने के गुणों का फायदा ना तो उसे मिल पाता है ना
समाज या देश को, जब
वही छात्र देश के प्रशाशनिक या अपने विषय विशेषमें
महारथ रखने से अलग कैरिएर का चुनाव कर लेता है| आज समाज में
यह अक्सर देखने को मिल सकता है कि यदि किसी संस्था या प्रतिष्ठान में चपरासी की पद
है तो उस पर उस पद से ज्यादा योग्यता रखने वाले आवेदक की भीड़ लग जाती है| यह हमारे
समाज और शिक्षा दोनों के लिए अपमान जनक है| हम कैसे शिक्षा का निर्माण कर रहे है| शिक्षा की
व्यवस्था में भी केटेगरी किया जाना चाहिए और शिक्षित होने के लिए एक नुय्नतम /
अधिकतम सीमा बने| जिससे
हर स्तर पर बनी शिक्षा का महत्व बना रहे|
इस दिशा में सरकार को यह तय करना
चाहिय्र कि हमें किस स्तर पर कितने शिक्षित युवा की जरुरत रहेगी| जैसे हमें
कितने वैज्ञानिक, कितने इंजीनियर, कितने डाक्टर और वकील या अन्य किसी विषय विशेष
के ब्यक्तियो की समाज और देश की व्यव्श्था को चलाने के लिए जरूररत है| उस तय सीमा
के आवश्यकता अनुसार ही शिक्षा को केटेगरी बनाकर उच्च शिक्षा की संस्थान खोले जाय| जिससे छात्र
और युवा के बीच स्पर्धा बन सके और विषय विशेष का प्रवेश छात्र के योग्यता अनुसार
उसे मिल सके| जिसमे वह सफल होकर अपनी योग्यता का सम्पूर्ण समाज और देश को दे सके|
समाज में शिक्षा का अधिकार सभी को
मिले इसके लिए एक नुय्नतम पाठ्यक्रम निर्धारित हो जिसमे सबसे पहले जिस विषय का
ज्ञान अनिवार्य हो वह सामाजिक जीवन की उपयोगिता, सामाजिक ब्यवहार और राष्ट्रवाद के
साथ पढने, लिखने के साथ अच्छे – बुरे कर्मो का ज्ञान, आपसी प्रेम समरसता और
जन-सम्मान की भावना विकसित किये जाने का जानकारी निहित हो| एक निश्चित
समय अविधि और शिक्षा का ज्ञान दिए जाने के बाद उसके मानसिक, शारीरिक और बौद्धिक
ज्ञान अनुसार उसे आगे के विषय विशेष की पढाए जाने के चुनाव का अवसर एक चुनाव
प्रक्रिया द्वारा जितनी समाज देश को जरुरत के संख्या के आधार पर दी जानी चाहिए
इसमे किसी प्रकार के अपवाद नहीं है क्योकि जब हम आई० ए० एस०
और पी० सी० एस० जैसे परीक्षा का आयोजन एक सिमित संख्या को देखकर करते है तो फिर
हमें इस व्यव्स्था को उच्च शिक्षा या विषय विशेष में क्यों नहीं कर सकते है, इस
व्यवस्था से किसी भी छात्र के समय और पैसे दोनों की बचत होगी और देश को जन्हा एक
विशेष गुणों वाले विषय विशेष के विशेषज्ञ मिलेंगे वही दूसरे तरफ रोजगार के साधन और
चुनाव शिक्षा की योग्यता अनुसार निर्धारण बन सकेगा| हम समाज में ढेर सारे इंजीनियर,
डाक्टर, वकील या अन्य विषय विशेषज्ञ बना कर क्या करंगे जब हम उन्हें उनके योग्यता के अनुसार रोजगार के अवसर समाज के विकास
में भागीदार नहीं बना पायंगे| यदि एक डाक्टर या इंजीनयर अपनी योगता अनुसार
रोजगार या जीविका का साधन नहीं पायेगा तो वह अपनी योग्यता का उपयोग अन्य असमाजिक
कार्यों में करेगा|
आज शिक्षा व्यापार का स्वरुप बन गया
है| शिक्षा के
द्वारा डिग्री मात्र पा लेना ही एक शिक्षित समाज के निर्माण के लिए सही नहीं है|
आज नहीं तो कल यह समाज देश के लिए एक गंभीर बीमारी बन सकती है| हमें प्रकृति की
रचना का पालन हर जगह की तरह शिक्षा में भी करना होगा| प्रकृति ने
जैसे फल, फूल और पेड़ों को एक जैसा और सामान गुणों का नहीं बनाया है जिसमे हम यह
देखते है प्रकृति किसी भी पेड़ पर पत्तों, फूलो और फल को एक सिमित मात्रा जितना उस
पेड़ की क्षमता से अधिक नहीं लगाने/उगने देती है| जिससे उसकी गुणवत्ता बनी रहे| उसी
तरह प्रकृति ने जब ब्यक्ति को एक समान नहीं बनाया है, हर व्यक्ति की अपनी एक पहचान
उसके रंग, रूप
और शारीरिक संरचना अनुसार भिन्न है तो हम सभी को एक ही तरह और समान शिक्षा सभी को कैसे
दे सकते है| हमें विषय विशेष और उच्च शिक्षा की संख्या के निर्धारण उपरान्त ही
शिक्षा व्यवस्था को आधुनिक बनाना होगा| शिक्षा में भी एक संतुलन स्थापित करना ही होगा
तभी उसकी गुणवत्ता और उपयोगिता का लाभ समाज देश को प्राप्त हो सकेगा और समाज देश
शिक्षा के विकास का सही लाभ पा सकेगा| इस सुझाव के प्रयोग कर हम निश्चित ही एक सफल शिक्षित
और विकसित समाज का निर्माण कर संकेगे|