बुधवार, 2 अक्तूबर 2013

सामाजिक जीवन ही सफल जीवन है


सामाजिक जीवन ही सफल जीवन है

हर मनुष्य जन्म लेने के बाद से जो भी कार्य करता है वह अपने ही लिए करता है इसमे कोई  संदेह और दुविधा  नहीं हो सकती है, यह भी सत्य है की जीवन पाने के बाद उसे चलाने या जीने के लिए कार्य चाहे जिस रूप मे हो, उसे करना ही पडता है पर अपने लिए तो सभी जीते है पर उसका जीवन तभी सफल हो सकता है जब वह दूसरों के लिए भी जिए या कार्य करे जिसे हम सामाजिक कार्य अथवा सेवा का नाम देते है| अब यह सेवा या कार्य कई रूपों मे हम कर सकते है जैसे देश सेवा, गौ सेवा, प्रक्रति सेवा, माता-पिता की सेवा, बुजुर्गो की सेवा आदि आदि बहुत प्रकार के सेवा है, पर इसमे माता-पिता की सेवा और गौ सेवा से बढ़कर कोई अन्य सेवा संसार मे नहीं है| मनुष्य आधुनिकता और भाग-दौड़ तथा स्वार्थ बस इन समाज कल्याण जैसे कार्य को बहुत ही पीछे छोड़ चुका है, आज इसकी बात करने संवाद करने की तक की किसी को फुर्सत नहीं है| ऐसा नहीं है की उक्त सेवाए समाज के लोगो द्वारा  नहीं की जा रही है पर उसमे भी कही ना कही मनुष्य का स्वार्थ छिपा रहता है इसी कारण वह सामाजिक सेवा भी आधुनिकता का रूप ले चुकी है| मनुष्य इस प्रकार की सेवा और कार्य तभी कर सकता है जब वह स्वंम् मे परिपूर्ण हो, इस परिपूर्ण का मतलब यह नहीं है की वह हर तरह से समपन्न और समर्थ हो, किसी भी सामजिक कार्य या सेवा के पीछे आप एहसान करने जैसी बात कभी भी ना समझे की मै किसी की मदद कर दू तो वो भी मेरी मदद करेगा या मेरा गुणगान करेगा, जिससे मेरी दुनिया  मे नाम और शोहरत प्राप्त हो|  आप यह मान कर यदि सेवा करते है की वह ही व्यक्ति या सेवा/सहयोग  पाकर  अपने कार्य मे सफल हो सके या आगे बढ़ सके या फिर उसके भी जीवन मे खुशहाली आ जाय, ऐसा करने के बाद आप को स्वंम्  अनुभव होगा की आप ने एक ऐसा कार्य किया है जिससे आप को  मन मे प्रसन्नता और शांति मिलेगी कि आप कृतज्ञ हो गए है| इस एहसास को बया नहीं किया जा सकते है| सेवा करने वाके व्यक्ति को मदद करने वाला कोई ना कोई मनुष्य अपने आप ही मिल जाता है उसे ढूढना नहीं पडता है| सामजिक कार्य से भाकर संसार मे दुसरा कोई कार्य नहीं है, इसे सिर्फ करने के बाद ही अनुभव किया जा सकता है| सम्पन्नता और एश्वर्या पाने के लिए आप जो चाहे कर ले पर वह कभी स्थाई नहीं हो सकती है एक ना एक दिन आप को भी किसी की जरूरत पड़ेगी, तब यह एह्शाश होगा इसे कोई भी  झुठला नहीं सकता है| धन पाने और एश्वर्या पाने की ईच्छा कभी खत्म नहीं होती है| यही प्रकिती का नियम है क्योकि यदि यह सीमा तय हो जायेगी तो प्रगति के साथ साथ संतुलन बिगड जायेगा, लोगों मे स्थिरता होने से तनाव बढ़ जायेगी, इसी लिए मनुष्य किसी भी कार्य से कभी संतुस्ट नहीं हो सकता है और आगे और आगे बढ़ने और जीवन के चक्र को चलाने के लिए वह जरूरी है, क्योकि यही क्रम को देखकर अन्य सभी सामाजिक चक्र को आगे चलाते है| और समय, भाग्य और कर्म का सम्बन्ध बना रहता है| इच्क्षाये कभी भी किसी की पूरी नहीं हो सकती है, पृथ्वी सूर्य, चन्द्रमा, जीवन के तरह ही सत्य है., प्रकिरती को ही देख ले उसकी भी इक्श्क्षा  कभी पूरी नहीं होती है (एक सामान नहीं होतीहै) सूर्य किसी वर्ष और समय मे इतनी गर्मी दे देता है की पिछले सारे रिकार्ड टूट जाते है, वर्षा कभी इतनी कम और कभी इतनी ज्यादा हो जाती है पिछले सारे रिकार्ड टूट जाते है आदि आदि..  तो हम मानव तो प्रकिरती के बनाए हुए प्राणी है तो भला हम कैसे इससे अछूते रह सकते है| मानव जीवन भी ठीक प्रकिरती के भाति एक सामान नहीं रह सकता है, उसमे भी जीवन चक्र  होता है पर वह किसके लिए कितना है यह समय के साथ कर्म के द्वारा भाग्य के रूप मे प्राप्त होता है| इस जीवन के चक्र को चलाये रखने के लिए सुख-दुःख, अमीरी-गरीबी, छोटा-बड़ा आदि चीजे निश्च्चित समय के लिए कर्म अनुसार भाग्य के रूप मे आते जाते रहते है| इसी क्रम मे कोई निर्धन और यह पाकर मृत्य को पाता है तो कोई निर्धन और अपयश पाकर, पर मृत्य सभी की होनी है, यही एक और केवल अंतिम सत्य है जो उस ईश्वर को मानने के लिए हम सभी को प्रेरित करती है| अंत मे केवल सार यही है की यदि हम उस ईस्वर मे विलीन होना चाहते है तो कर्म जो अपने वश मे है वह अच्छा से अच्छा करे, और अपने लिए जीवन जीने के साथ साथ कुछ ना कुछ सामजिक कार्य/सेवा अवश्य करे ताकि मृत्य के बाद कोई असत्य जीवन का शेष न रहे|

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