समय, भाग्य और कर्म
एक कहावत अत्यन ही चरितार्थ है, कि समय
बड़ा बलवान होता है| मनुष्य छड भर मे राजा और दूसरे छड मे रंक बन जाता है| हम किसी
के भाग्य के बारे मे कोई भी भविष्यवाणी नहीं कर सकते है, हम कभी कभी यह सोचने के
लिए मजबूर हो जाते है एक व्यक्ति कैसे राजा से रंक और रंक से राजा बन जाता है| इस
विषय मे यह कहना अतिशयोक्ति है की समय पर किसी का नियंत्रण नहीं होता है, वह
परमात्मा द्वारा निर्धारित रहता है, भाग्य भी मनुष्य के हाथ मे नहीं होता है वह
दूसरों के हाथ मे होता है, अब केवल कर्म ही बचाता है जो मनुष्य के अपने हाथ मे है|
यह बाते मनुष्य तब तक नहीं समझ सकता जब तक की उसको वह प्रयोगिक रूप से अनुभव ना कर
ले, और तब तक प्रायः बहुत देर हो चुकी होती है| अब कर्म प्रधान जीवन ही सफल हो
इसके लिए सच्चे रूप मे सही दिशा और लक्ष्य के साथ हमें कर्म करना चाहिए| गीता मे
कहा गया है की जैसे कर्म करेगा प्राणी वैसे फल देगा भगवान, यहाँ भगवान का मतलब समय
और भाग्य से है यह कोई जरूरी नहीं की अच्छे कर्म आप करे और अच्छा फल पा ही जाय|
क्योकि समय किसी के हाथ मे नहीं है न कोई उसे अपनी इक्षा के चला सकता है, वही उसका
भाग्य दूसरों के हाथ मे होता है वह उसको जबर्जस्स्ती ले नहीं सकता है| हर प्राणी
का धरती पर आने(जन्म) और जाने (मृत्य) का समय निश्चित होता है, और वह किसी को पता
नहीं होता है| यह एक प्राकिरितिक बय्वस्था है, जो संसार को चलाने के लिए जरूरी है,
एक ही व्यक्ति या समुदाय हमेशा के लिए बना रहे तो जीवन के साथ प्रकिरती भी रुक
जायेगी, और संतुलन बिगराने के साथ संसार भी समाप्त हो सकता है| मनुष्य के वश मे
कुछ भी नहीं है फिर भी हम सत्य और कर्म को भूल जाते है, इसमे मनुष्य का भी कोई दोष
नहीं है क्योकि यदि आप असत्य का साथ नहीं देगे पापी नहीं होगे तो फिर, इस बात का
एह्शाश कैसे होगा की अच्छाई और बुराई मे क्या अंतर है, प्रकिरती ने प्राणी को जन्म
देने के साथ ही सुख-दुःख, यश-अपयश, उंच-नीच, आदि का कर्म उसके भाग्य मे बाद देता
है| अब समय और भाग्य के बाद कर्म जो की
अपने हाथ मे होता को अच्छा या बुरा बनाना होता है| हम अच्छे कर्म करगे तो अच्छे फल
की उम्मीद कर सकते है पर यदि कर्म ही बुरा है तो फिर समय या भाग्य हमा कुछ नहीं कर
सकता है| यह दीक वैसे ही है जसे की आप कोई वृछ लगते है तो जो वृछ अच्छी तरह से
देख-भाल होता है उसमे फल अच्छा और ज्यादा
होता है और जिसमे देख भाल नहीं होता वह नहीं
देता है| यह समय की ही दें होती है एक व्यक्ति अत्यधिक धनवान होने के बाद भी उस धन
का उपयोग नहीं कर पाता है, और कोई निर्धन होते हुए भी दूसरों के धन का उपभोग करता
है, यही भाग्य है|
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