वसंत
के रंग समाज के
संग
बसंत पंचमी को हमारे समाज में बहुत ही शुभ मुहूर्त साझा गया
है। प्राय: हर समाज में इस नवागुत शुभ मुहूर्त में बहुत से चीजों
जैसे संस्कार कार्य, गृह प्रवेश, विद्या किये जाने हेतु और शादी विवाह आदि के अनेक
रस्म की प्रारम्भ बसंत पंचमी के अवसर पर किये जाते है| वसंत ऋतु माह को पुराणों
में भी श्रेयस्कर माना गया है।
विद्या की देवी सरस्वती का
जन्मदिवस भी वसंत पंचमी के दिन वसंत ऋतु के आगमन का भी प्रतीक है। वसंत ऋतु का पर्व
भारत के साथ-साथ अनेक देशोँ जैसे बांग्लादेश और नेपाल में भी धूमधाम से मनाया
जाता है, साथ ही दुनिया में जहां भी जाकर भारतीय बसे हैं, वहा वसंत ऋतु पर्व को
पूरे विधि-विधान से मनाते हैं। भारतवर्ष में
पूर्व में स्थित प्रदेशों बंगाल, आसाम और खासकर बिहार में इसका बहुत ही
महत्व है, इन प्रान्तों में लोग माँ सरस्वती के स्थापना और पूजन के साथ इनका
विसर्जन आदि के कई कार्यक्रम हर्ष-उल्लास के साथ मानते है| वसंत ऋतु का पर्व माँ शारदा की व्रत, पूजा और उनकी असीम अनुकम्पा प्राप्त
किये जाने का भी अवसर है। वसंत ऋतु में पूर्वजो का मना है कि वसंत ऋतु के दिन पीले
वस्त्र पहनने चाहिए। वसंत ऋतु पर्व का महत्व का महिमा पौराणिक ग्रंथो, पुराणों और अनेक
धार्मिक ग्रंथों में विस्तारपूर्वक किया गया है। इसका उलेख्या देवी भागवत में भी मिलता है कि माघ शुक्ल पक्ष
की पंचमी को ही संगीत, काव्य, कला, शिल्प, रस, छंद, शब्द शक्ति को प्राप्त हुई थी।
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार
वसंत पंचमी पर पीला रंग के महत्व वर्णित है और इस दिन पीला रंग के वस्त्र और अन्य
चीजे सामाजिक जीवन में उपयोग की जाती है| क्योंकि इस पर्व के बाद शुरू होने वाली
बसंत ऋतु में फसलें पकने लगती हैं और पीले सरसों के फूल भी खिलने लगते हैं। वसंत ऋतु
त्योहार पर पीले रंग का महत्व इसलिए कहा जाता है क्योंकि बसंत का पीला रंग
समृद्धि, ऊर्जा, प्रकाश और आशावाद का प्रतीक है। इसलिए इस दिन पीले रंग के कपड़े
पहनते हैं, साथ हे लोग घरों में पीली द्रब्य
पदार्थो के खाद्य व् व्यंजन बनाते हैं।
मनुष्य
के जीवन में उमंगे भरती, प्रकृति और मनुष्य को जोड़ने वाली ऋतु है वसंत ऋतु कड़कड़ाती
ठंड के अंतिम चरण में जाने के बाद वसंत ऋतु का आगमन प्रकृति को वासंती रंग से
सराबोर कर जाता है। वसंत ऋतु के आगमन से आम के पेड़ों पर बौर आने भी शुरू हो जाते
है| हिंदू संस्कृति में इस दिन आम के बौर और ऊल्लू का देखना भी शुभ माना जाता है|
सारी धरती हरे भरे हरियाली से ढकी सरसों के खेत पीले फूलो से ढके और गेंहू के बाल
पके खेतों में लहलहाते है| गुलाबी ठंड, वसंत पंचमी ऋतुओं के उसी सुखद परिवर्तन का
एक रुप है।
हमारा हैहयवंश क्षत्रिय
समाज में भी पुरातन काल से आज भी अधिकतर घर – परिवार में वसंत ऋतु के आगमन का
स्वागत बड़े ही हर्ष-उल्लास के साथ मनाया जाता है| इस दिन सभी घर के लोग सुबह सुबह
ही स्नान ध्यान के उपरांत पीले वस्त्रों को धारण करते है और माँ सरस्वती, शारदा और
भगवन शंकर के मंदिर में पूजा अर्चना भी करते है| अधिकतर परिवारों में इस दिन अनेक
शुभ कार्यों का प्रारम्भ करते है|
पौराणिक मान्यता
सृष्टि की रचना के समय
ब्रह्माजी ने महसूस किया कि जीवों की सर्जन के बाद भी चारों ओर मौन छाया रहता है।
उन्होंने विष्णुजी से अनुमति लेकर अपने कमंडल से जल छिड़का, जिससे पृथ्वी पर एक
अद्भुत शक्ति प्रकट हुई। छह भुजाओं वाली इस शक्ति रूप स्त्री के एक हाथ में पुस्तक,
दूसरे में पुष्प, तीसरे और चौथे हाथ में कमंडल और बाकी के दो हाथों में वीणा और
माला थी। ब्रह्माजी ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही देवी ने वीणा
का मधुरनाद किया, चारों ओर ज्ञान और उत्सव का वातावरण फैल गया, वेदमंत्र गूंज उठे।
ऋषियों की अंतःचेतना उन स्वरों को सुनकर झूम उठी। ज्ञान की जो लहरियां व्याप्त
हुईं, उन्हें ऋषिचेतना ने संचित कर लिया। इसी दिन को बंसत पंचमी के रूप में मनाया
जाता है।
हम हैहयवंशी
में लेकर आये यह मौसम की बहार
आओ मिलकर मनाये यह बसंत
ऋतू का त्योहार
इस बंसंत सभी भूले
बिछड़े जोड़े हैहयवंश का नाम
आओ मिलकर मनाये यह बसंत ऋतू का त्योहार
इस बसन्त से हम सब
जाने जाय बस एक नाम
वसंत ऋतु के पर्व का आज के
परिवेश में हमारे हैहयवंश समाज में इसके
उपयोग और महता और भी अधिक बन जाती है, हम क्षत्रिय वंश से सम्बन्ध रखने के नाते
हमें शिक्षा का संकल्प लेना चाहिए जिससे ज्ञान और बुद्धी का समावेश हमारे
क्षत्रिय्ता के सौर्य को स्थापित करने में सहयोगी हो| आज हमारा समाज इसी कारण से
पीछे है कि हमारे वंश के लोगो ने शारीरिक श्रम और साहस को तो बनाये रखा परन्तु
शिक्षा और सामाजिक ज्ञान के अभाव में हम पीछे होते गए और अन्य समाज हमसे आगे हो गए|
वसंत पंचमी पर्व का धार्मिक एवं वैज्ञानिक महत्व
वसंत
ऋतु में पीला रंग सादगी
और निर्मलता प्रदान करता है
हिंदू संस्कृति में हर रंग
की अपनी खासियत है जो हमारे जीवन पर गहरा असर डालती है। हिन्दू धर्म में पीले रंग
को शुभ माना गया है। पीला रंग शुद्ध और सात्विक प्रवृत्ति का प्रतीक माना जाता है।
यह सादगी और निर्मलता को भी दर्शाता है। पीला रंग भारतीय परंपरा में शुभ का प्रतीक
माना गया है।
1.
वसंत ऋतु का पीला रंग दिल और आत्मा से जोड़ता है
फेंगशुई ने भी इसे आत्मिक
रंग अर्थात आत्मा या अध्यात्म से जोड़ने वाला रंग बताया है। फेंगशुई के सिद्धांत
ऊर्जा पर आधारित हैं। पीला रंग सूर्य के प्रकाश का है यानी यह ऊष्मा शक्ति का
प्रतीक है। पीला रंग हमें तारतम्यता, संतुलन, पूर्णता और एकाग्रता प्रदान करता
है।
3. वसंत ऋतु में मनुष्य का मष्तिक अत्यंत शांत और सक्रिय रहता
है
भारतीय सभ्यता में ऐसी मान्यता
है कि यह रंग डिप्रेशन दूर करने में कारगर है। पीला रंग थेरपी के लिए भी उपयोगी
है| यह उत्साह बढ़ाता है और दिमाग सक्रिय करता है। जो दिमाग में उठने वाली तरंगें खुशी का एहसास कराती
हैं। वसंत ऋतु में मनुष्य का आत्मविश्वास
में भी वृद्धि करता है। हम पीले परिधान पहनते हैं तो सूर्य की किरणें प्रत्यक्ष
रूप स दिमाग पर असर डालती हैं।
वसन्त रुतु के आगमन उपरांत ही हिंदू धर्म में मनाया जाए
वाला होली का त्यौहार पुरे देश में मनाया जाता है| लोक राग-रंग का वसंत पर्व लोक
गीत और, संगीत का वाहक है|
पीले फूलों की वर्षा, शरद ऋतुओँ की फुहार,
सूरज की चमकीले किरणे, खुशियों की बहार,
पीले चन्दन की खुशबु, अपनों का सारा प्यार,
मुबारक हो सबको, बसंत पंचमी का त्योहार।