बुधवार, 3 जून 2020

जीवन निर्माण के तीन मंत्र


जीवन निर्माण के तीन मंत्र

     प्रकृति की हर अनमोल चीजो में विशिष्ट गुणों की तरह मनुष्य का जीवन भी अनेक गुणों के साथ अत्यंत ही रोमांचक और संघर्ष शील प्रक्रिया का धोतक है\ प्रकिरती की हर चीज को मनुष्य  की तरह ही संघर्ष में शुख  और दुःख दोनों का सामंजस्य है| प्रकिर्ति के अन्य चीज और जीव अपने शुख और सुख को प्रकिर्ति के ही बनाये नियम और साधनों से पूर्ण कर लेता है क्योकि उनमें मनुष्य की तरह गुण जैसे बुधि,, सोच, शक्ति और निर्णय करने की अनमोल शक्ति नहीं है| मनुष्य प्रकिर्ति के द्वारा पाए गए इन गुणों का  उपयोग कुशल,  सफल और सुन्दर बना सकता है| प्रक्रति द्वारा प्राप्त इन गुणों को हम मनुष्य जीं के तीन मंत्र द्वारा सफल और उज्वल बना सकते है यदि हम इस पर विचार पूर्वक सही तरीके और मन से करे| ये तीन गुण शिक्षा या ज्ञान, अनुभव या सिखने की लगातार चाहत और स्वंम का सगुण जिसे हम बहुत जल्दी नहीं पहचान सकते है क्योकि यह कही से या किसी के द्वारा नहीं मिल सकता है| सगुन जिसे हम इंगलिश में टैलेंट कहते है| इन सभी में शिक्षा को कही से भी पाया जा सकता है यह स्थान्तरित होता रहता है और सतत ग्रहण करने की प्रक्रिया है| अनुभव या शिख हम लगातार कार्यों को करते रहने से प्राप्त होता है यह स्थान्तरित नहीं हो सक

     ता है इसे हम दूसरों से सीख तो सकते है पर पा नहीं सकते है हम कही से भी अनुभव को ग्रहण कर सकते है  परन्तु तीसरा गुण (टैलेंट) इन दोनों चीजों  से भिन्नं ना तो स्थान्तरित कर पाया जा सकता है और नहीं इसे ग्रहण किया जा सकता है| यह भी सच है की हर मनुष्य में कुछ ना कुछ गुण होता ही है यहाँ इंगलिश में प्रचलित टलेंट जिसमे गुन का भाव एक  साथ सनुग और अवगुण में होता है परन्तु हम तलेंट के लिए सगुन का ही समान्त्रित अर्थ लेते है| हम इस सगुण को कैसे जीवन में पाए इसके लिए हम बहुत ज्यादा कुछ नहीं करने की जरुरत है जब हमारा ज्ञान या शिक्षा का विस्तार और बढ़ रहा होता है और हम अनुभव के द्वारा बहुत कुछ जान लेते ई तो इस दौरान अपनी विशिष्ट क्षमता या पर्विर्ती के द्वारा कुछ कार्य को अपने व्यहार के साथ कई बार करते है जो एक सच्चे और अच्छे कार्य के लिए हो रहा है तो हमें यह समझ लेना चाहिए यही गुण हमारा सगुण या टैलेंट है| मनुष्य इसी सगुण और टैलेंट को जब ठीक से पहचान नहीं पाता  तो वह लाख कोशिश के बाद भी अपने कार्य जीवन में सफल नहीं हो पाता  है और फिर हम प्रकिर्ति के साथ समय और भाग्य को मान कर समझौता कर लेते है| यह प्रकिर्ति की बनाई हुयी चीज है जो केवल प्राणी मात्र में ही नहीं होती परन्तु अन्य जीवो फल-फुल पेड में भी होते है और सभी अपने अपने सगुण के ही नाते जाने और पहचाने जाते है|

सामाजिकता में धार्मिक महत्व


सामाजिकता में धार्मिक महत्व

       प्राचीन सामाजिक संगठनो की संगठनात्मक और सफलता का यदि हम अध्यन और विवेचन करे तो पायेंगे कि समाज की परिकल्पना अत्यन ही प्राचीन था और जब समाज का उदय हों रहा था तब भी हर समाज को अपना एक सामाजिक संरचना थी जोकि आज के सामाजिक परिवेश से कही मजबूत और सफल थी| समाज और सामाजिकता का स्वरुप किसी ना किसी रूप में सभ्यता के विकास और संचरना के लिए हमेशा ही रहे| हम चाहे कितना भी सामाजिक विकास और आधुनिक हों जाय| प्राचीन काल के सामाजिक स्वरुप को हम यदि नजदीक से देखे तो पायंगे कि जो आवश्यकता मनुष्य को तब थी उसमे कोई भी बहुत बदलाव नहीं हुआ है, मनुष्य प्रकृति के रचना एक सजीव और चलायमान प्रानी है उसकी आवश्यकताए अत्यंत है, मनुष्य में सभ्यता का विकास जैसे जैसे होता गया उसकी सोच और विचार के बदलाव ने अवश्य ही समाज के बंधन से मुक्त रहना कहता है पर वह संभव नहीं है क्योकि हम कितना भी आधुनिक बन जाय, जीवन के संस्कार और कार्यों में हमें कही ना कही समाज की आवश्यकता पडती ही है, और हममे से अधिकतर सामाजिक लोग को जीवन के उस पड़ाव में इसकी कमी पडती है और हम समाज के तरफ देखते है, कि यदि अपना भी एक सामाजिक संगठन होना चाहिए| प्राचीन सामाजिक संगठनों ने समाज को एकत्रित और संगठित करने के लिए धर्म और कर्म का बहुत योगदान होता था, क्योकि समाज में धार्मिक कार्यों और मूल्यों की मान्यताये अधिक थी लोग जीवन के हर पहलू में धर्म और पूजा पाठ का सहारा लेते थे, यंहा तक की समाज के सभी कार्य बिना धार्मिक पूजा पाठ के शुरू ही नहीं किये जाते थे| मनुष्य अपने अपने समाज के बनाए गए धार्मिक बंधनों का सहर्ष स्वीकार करते हुए उसका पालना करता था| यंहा तक की समाज में कई बीमारियों में लोग केवल धर्म और कर्म का हेई पालन करते हुए इसका इलाज़ करते थे| समाज के सारे कार्य धर्म के तहत समय और मुहर्त में किये जाते थे| समाज का संगठन उस समय इसी लिए सफल था क्योकि के धार्मिक बंधन और मान्तातये सभी को सामान रूप से स्विक्कर थे| समाज में धीरे धीरे समय और परिस्थिति ने परिवर्तन होते गए और समाज का स्वरुप और कार्य शैली में भी परिवर्तन आते गए| आज के परिवेश में हम जन समाज के लिए एक सामाजिक संगठन की परिकल्पना करते है तो यह कार्य बहुत ही कठिन प्रतीत होता है| 


       पुरातन और आधुनिक सामाजिक संगठन में सबसे बड़ा अंतर समाज के लोगो में विचारों का तेजी से बदलाव और एकरूपता की कमी लगती है जो स्वाभविक भी है पहले हम सामाजिक नेतृत्व करने वाले के प्रति संस्कार के कारण कभी भी सीधे विरोध और असहमति नहीं होती थी| जो भी सामाजिक नियम और कार्य होते थे सभी के लिए सामान था, उच्च-निच, छोटे=बड़े, धनी=निर्धन, शिक्षित – अशिकिषित किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं था इस कारण से प्राचीन सामाजिक संगठन सफल थे| इन सबसे से बड़ी जो बात प्राचीन काल जो सामाजिक ताने बाने को एक दूसरे से बाधे रखती थी वह धार्मिक तथा पूजा पाठ जिसे हम अपने अपने समाज के लिए ईस्वर के रूप में एक स्थान देते हुए उसके प्रति सामाजिक जागरूपता और सामाजिक भय, जिसके कारण हम एक दूसरे से बढे रहते थे| मनुष्य और समाज कितना भी विकास और आधुनिक हों जाय समाज और सामाजिक आवश्यकता कभी भी खत्म नहीं हों सकती है, आज भी हमें इसकी जरूरत दिखाई दे रही है और हम सभी अपने अपने समाज को संगठित और विकसित करने में किसी ना किसी रूप लगे है| उक्त विचार को लिखना उसी कड़ी में हमारा एक प्रयास है कि हम कैसे धार्मिक और पूजा पाठ के पद्धिति को पुन: से अपने सामाजिक स्वरुप को गति प्रदान करने और संगठित करने में प्रयोग करे| यह कोई नयी प्रयोग नहीं है हम सभी समाज में बहुत से सामाजिक संगठन विभिन्न ईस्वर के पूजा पद्धिति को अपना कर एक सामजिक संगठन बना रखे है जो प्राचीन सामाजिक संगठन के सभ्यता पर विकसित है| आप सभी बहुत से संपदाय और सत्संग के नाम से संस्थाए जैसे राधा स्वामी सत्संग समाज, राधा कृष्ण सत्संग, श्री वैष्णव समाज, साईं सत्संग अदि अदि| इन सभी समाज के लोग एक दूसरे के प्रति धार्मिक भावनाओं के कारण एक किये रहते है और वो सभी इस समाज से जुड़े है संगठित है| हमारा भी उद्देश्य अपने समाज को संगठित करने के लिए यही धार्मिक भावना का लाभ उठा कर समाज को एक दूसरे से जोडते हुए संगठित करने का एक प्रयास है| 


       हमें किसी अन्य धार्मिक और रूप की आवश्यकता नहीं है क्योकि हमारा समाज के वंश परम्परा ही धर्म और कर्म पर आधारित है यह तो हम सभी का दुर्भाग्य है की हम आज तक इससे अनिभिज्ञ रहते हुए इसका लाभ नहीं उठा पा रहे है| हमारा सभी का यह प्रयास होना चाहिए जिस समाज के पास महान चंद्र वंश और प्रतापी हैहयवंशी महाराज जो की साक्षात श्री हरी विष्णु के अंश है के वंशज होते हुए भी आज हम बिखरे और असंगठित है| हम एक प्रयास अपने धार्मिक और पूजा – पाठ के स्वरुप को एक बार पुन: से स्थापित करते हुए इसके प्रचार और प्रसार कर श्री सह्स्त्राबहु सत्संग की स्थापना करे और समाज में इस सत्संग के मध्यम से समाज को जोडने का प्रयास करे, अपनी सामाजिक-धार्मिक मान्यताये समाज में चर्चा करे| इस सत्संग की सफलता हम समाज के महिला और बच्चो के बिच में लाकर अधिक सफल हों सकते है क्योकि अपने  समाज में महिलाओ के पास आज भी धर्म से जुड़े भावनाये है जिसे हम प्रयोग कर इसे सफल कर सकते है. इसका लाभ हम एक तरफ महिलाओ के समय के सदुपयोग से पा सकते है दूसरी तरफ सामाजिक बच्चो को अपने धार्मिक एयर इतिहास से आसानी से परिचय करा सकते है जो भविष्य में अपने समाज के एक सामाजिक ब्यक्ति बनगे जिसका लाभ आने वाली पीढ़ी को मिलेगा और हमारा सामाजिक संगठन और मजबूत और शशक्त हों जाएगा| हमें इस सच को स्वीकार करने में कोई भी हिचक नहीं आज हमारे समाज के बच्चे ना तो अपने धार्मिक संस्कार से परिचित है नाही अपने वंश-जाति से जिसले कारण जब वह यह समझाने को तैयार होते है उनकी अभिग्यांता उन्हें उलझन और अनिसिचिता में दाल देती है|


       इसके क्रियान्वन और सफलता के लिए समाज के कुछ ऐसे लोगो की आवश्यकता है जो अपने समाज के धार्मिक, संस्कारिक और इतिहास के ज्ञान के साथ उसे समाज को कैसे पहुचाया जाय पर सहयोग देना चाहते है, जिनमे वाक्-पटुता, चोजो का ज्ञान और सबसे धार्मिक रूप से प्रस्तुत करने की कला हों| हमें निश्चित ही यह विशवास है की ऐसे बहुत से लोग समाज में है जो आपने इतिहास और धार्मिक रूचि के साथ उन्हें प्रचार प्रसार कर सकते है| हम उन सभी सामाजिक ब्यक्तियो से निवेदन करंगे की वह सभी एक प्लेटफार्म पर एकत्र होते हुए इस सहस्त्रबाहु सत्संग की धार्मिक परिकल्पना को साकार करते हुए समाज को संगठित और विकसित करने में सहयोग प्रदान करंगे| इस कार्य के लिए हमारे पास पर्याप्त मात्रा में सामग्री उपलब्ध है जिसके माध्यम से हम इस सामाजिक सत्संग को सफल बना सकते है| इसके आयोजन और क्रियान्वन में बहुत ही कम धन और समय का खर्च है और धार्मिक कार्य के कारण इसमे सभी का सहयोग भी मिलने की उमीद भी है| यह हमरा एक प्रयास है शेष समाज के लोगो पर निर्भर करता है की कितना सहोग इस योजना में मिलता है यह एक रचनात्मक आन्दोलन है| आशा हेई नहीं विश्वास है की आप सभी सामजिक विशेष कर ज्ञानी और धार्मिक आगे बढ़ते हुए इसकी सफलता के लिए संपर्क करंगे|’
#सामाजिकता
#सामाजिक
#धार्मिक       

सामाजिक उत्थान के लिए स्थान परिवर्तन एक पूर्ण विकल्प


सामाजिक उत्थान के लिए स्थान परिवर्तन एक पूर्ण विकल्प


        प्रकृति हमें परिवर्तन का सच्चा रूप हमेशा दिखाता रहता है. परन्तु हम सभी प्रकृति के इस रूप को जानते हुए भी हम इसे अपने सामाजिक जीवन में नही ढाल पाते है| प्रकृति जिस प्रकार मौसम के रूप में हमें जाड़ा, गर्मी और बरसात से, समय को दिन और रात से, संघर्ष को अमीरी और गरीबी से, अनुभव, एह्शाश को शुख और दुःख से जीबन को जन्म और मौत से रूबरू करता है और हम इस परिवर्तन में अपना पूरा जीवन समाज के बिच व्यतीत करते रहते है| समाज के रूप में हम अपना भाग्य और किश्मत मानकर सब्र करते है और जीवन बदलते रहते है| हम इस सामाजिक परिवर्तन के लिए कभी नहीं सोचते है जबकि दुनिया में हर चीज परिवर्तित और समय के साथ बरहती रहती है और परिवर्तन के साथ  प्रगति और विकास होता है अत: हमें प्रकृति के इस परिवर्तन के रूप को समझाने की आवश्यकता है यदि हम या हम अपने समाज के उत्थान के बारे में सोचते है| उक्त कथन का अभिप्राय बस इतना  है  कि हमें अपने जीवन, कार्य, स्थान को भी परिवातित करने का प्रयास करना चाहिए ताकि नयी सोच, नयी कार्य और नयी जगह के स्वरुप में 

      हम अपने और समाज के उत्थान में सहयोग कर सकते है| इसमे किसी प्रकार की संदेह नहीं है की हम परिवर्तन के साथ अपना और साथ साथ अपने समाज का विकास बहुत ही आसानी से कर सकते है| इसके एक नहीं संकडो उदारहण आप के ही आस – पास मिल जायंगे| हमें अपने पास-पडोश में ही कई परिवारों में यह देखने को मिलता है की एक संगठित परिवार का कोई बच्चा जब पढ़-लिखाकर नौकरी चाकरी या व्यसाय हेतु किसी अन्य जगह पर जाता है तो उसके सामाजिक जीवन में एक बड़ा परिवर्तन देखने को मिलता है जैसे उसका रहन-सहन, कार्य शैली, और व्यवहार जिसे हम सभी यदि उत्तम है तो इसे सपोर्ट करते है और उसके और उसके सामाजिक विकास को अच्छा मानते है और फिर धीरे धीरे उस संयुक्त परिवार के भी बदलाव आने लगता है| इसमे किसी भी प्रकार की बनावट नहीं है इस प्रकार एक परिवार को बदलाव का लाभ मिलाने से दूसरे परिवार भी प्रभावित होते है| इसी कड़ी मेरा इस लेख लिखने के पीछे सिर्फ यही मंशा है की जिस प्रकार एक व्यक्ति  के परिवर्तन से एक परिवार बदल सकता ही तो क्यों नहीं हम इस परिवर्तन के बारे में कुछ आगे बढ़ कर सोचे| हमें अपने और अपने सामाजिक विकास के लिए यदि अपना कार्य और स्थान बदलने की आवश्यकता लगे तो इससे ज़रा भी हिचक ना करे क्योकि कभी कभी इंतज़ार और सामाजिक डर अपने और  अपने समाज के विकास में बाधा बन जाती है| जीवन में संघर्ष हर जगह है, जीवन हर जगह चल सकती है पेट हमें अधेरे और अनजान जगह पर भी खाने के लिए कार्य आवश्यकता अनुसार चुनने को अवसर दे ही देती है, हम किसी भी मजबूरी में किसी अनजान जगह पर मेहनत मजदूरी कर अपना जीवन आसानी से चला सकते है| स्थान परिवर्तन ग्रहों के चाल की तरह ही फल भी देते है अत: हमें यह एक प्रयास अवश्य करना चाहिए जबकि हम जिस जगह पर कई वर्षों, पीढीयो और समय से रह रहे हो और जीवन स्थिर हो गया हो कार्य – रोजगार ठीक ना चल रहा हो, जीवन के इस संघर्ष को नया रूप और नयी प्रगती के लिए स्थान परिवर्तन एक सही और उचित कदम है| 

       इस प्रगति में बल, बुद्धी और ज्ञान अवश्य ही महत्व राकेट है| इसी लिए समाज के विकास में शिक्षा और ज्ञान का महत्व हमेशा माने रखता है| हमें इस बारे में विचार करना ही होगा यदि आज हम समूर्ण शिक्षा और ज्ञान नहीं ले सके तो हम जब स्थान का अपरिवर्तन करे तो चाहे जो भी जीविका का साधन चुने अपने आने वाली पीढ़ी को ज्ञान के साथ शिक्षा के महत्व तथा संस्कार को जरुर पूरा करे इसके लिए थोड़ा कष्ट भी आज यदि होता हो तो कोई बात नहीं पर हमारा आने वाला कल और जीवन अवश्य प्रभावित होगा| प्रकृति के परिवर्त्तित नियमों की ही तरह ही अपने पीढ़ी की चली आ रही कार्य-व्यव्स्सय और रूप-तरीके को भी परिवर्तित करने की आवश्यकता है जो समय के मांग और सामर्थ अनुसार बदला जाना चाहिए तभी अपने और समाज के प्रगति में सहायक बन सकते है| स्थान परिवर्तन की सबसे बड़ा फ़ायदा यह है की हम नयी जगह जब रहते है तो नए लोगो के बीच हमारी अपनी अपनी  जीवन-यापन, क्रय-शैली और अपने अंदर का डर यह नहीं रहता है की हमें कोई जानता है जो यह कार्य कैसे करे, या कोई जान जाएगा की हम सफल नहीं हुए तो जग-हाशाई या शर्म होगी, हम खुले विचार और मन से कोई भी कार्य व्यस्हाय जीवन यापन और आने प्रगती के लिए कर सकते है और यदि समय के साथ किश्मत का साथ मिलता है तो एक बड़ा परिवर्तन जीवन में देखने को मिलते है फिर जब सफलता मिल जाती है तो हर चीजे अच्छी होती चली जाती है| जीवन को सच्चाई के साथ इमानदारी से यदि हम करते है तो हम कोई भी कार्य करे हमें सफलता मिलेगी. जीवन जीने के लिए कोई भी कार्ये अच्छा या बुरा छोटा या बड़ा नहीं होता| छोटे से छोटा कार्य कर के ही लोग आगे बढ़ाते है जो सही माने में स्थिर और सुध्रिड और स्थिर होता है| हमें इसके लिए समाज में सैकरों उदहारण मिल सकते है| इस परिवर्तन में शिक्षा का महत्व एक बड़ा रोल अदा करता है, हमें अक्क्सर अपने आस पास के समाज के परिवारों में देखने सुनाने को मिलता है की उस परिवार या उनका लड़का एक दबे सहर में डाक्टर या इंजीनियर या वकील या ठेकेदार या एक बड़ा व्यसायी   है| शिक्षा में नौकरी का योगदान का महत्व सभी जानते है जब हम नौकरी में होते है तोयह परिवर्तन समाज को विकास में आगे बढ़ाने में अपना योगदान कर रहा है क्योकि किसी को भी नौकरी अपने घर पर या आस पास मिले यह बहुत कम संभव है, और जीविका के लिए यदि नौकरी कर रहे है तो हम इस स्थान परिवर्तन को स्वीकार कर ही लेते है तो फिर हम अपने कार्य या व्यवसाय को करने के लिए स्थान का परिवर्तन  क्यों नहीं कर सकते है| 

      हमें अपने रुधध्वादी विचार और हठ को छोडना ही होगा तभी हम अपना और समाज का विकास सही माने में कर सकते है| जिस प्रकार हम सफल होने पर हम और हमारा परिवार खुश और सुखी महशुस करता है ठीक हम जिस परिवेश में और अपनो के बीच रहते है उस समाज के विकास और शुख सम्पन्ता के बारे में  भी सोचना चाहिए| जितना महत्व हम परिवार को समझते है उतना ही महत्व हमें समाज के लिए भी सोचना होगा क्योकि हमें समाज की उतनी ही आवश्यकता है जितनी अपनी और अपने परिवार की, जब हम परिवार को आगे बढाने और संबंधो के बारे में सोचते है इसके महत्व को समझ आता है फिर अपने जैसा और अपने लिए दुसरा सम्बन्ध पाने में मुश्कित होती है यही सामाजिक जीवन की व्यवस्था है हर परिवार को दूसरे परिवार की जरुरत होगी| इस लिए समाज का होना अनिवर्य है, तो हमें अपने विकास के साथ अपने समाज के विकास के महत्व को समझना होगा और सामाजिक परिवर्तन के बारे में भी सोचना होगा| जिससे हमारा भी समाज एक विक्सित समाज बन सके|  जिस प्रकार हर कार्य की अच्छाई और बुराई होती है इस सामाजिक परिवर्तन में स्थान बदलने के कारण हम इसके अच्छाई को अपनाये और परिवर्तन और विकास के साथ दूसरों के साथ और संपर्क को ना तो छोड़े और नाही उन्हें भूल जाय, बल्कि हम उन्हें भी साथ लेकर चले और अपने संस्कारो को सुदृण करते हुए एकता और विकास के सामाजिक  प्रगति और संगठन को शशक्त बनाने में हम सभी भागीदार बने|


शेयरिंग इज थे बेस्ट शोसल मेडसिन


शेयरिंग इज थे बेस्ट शोसल मेडसिन

      आज पूरा समाज किसी ना किसी सामजिक बीमारी का शिकार है, यह बीमारी व्यक्ति, परिवार के साथ साथ समाज और देश को भी बीमार कर रहा है| कहते है एक स्वस्थ  शरीर में ही स्वस्थ दिमाग और सफलता का सूत्र रहता है तो जब तक समाज का हर व्यक्ति स्वस्थ नहीं होगा हम स्वस्थ समाज की कल्पना नहीं कर सकते है| हमारे और हमारे समाज के स्वस्थ सेहत के लिए परस्पर एक दूसरे का सवांद स्थापित करना अति आवश्यक है क्योकि बहुत सी बीमारिया जानकारी के अभाव में हम उस उपाय या चीज को नहीं  कर पाते है जिसके लिए हम लाख रुपया पैसा खर्च कर दे या प्रयास कर ले सफल नहीं हो पाते है| इसी प्रकार स्वास्थ के अतरिक्त बहुत से दिन प्रति दिन के सामाजिक परेशानी मनुष्य के जीवन में बीमारी के रूप में आती रहती है जिससे के उपाय ढूढने और सफल होने के लिए हम अपना बहुमूल्य समय इधर उधर के भाग दौर और उपायों में खर्च कर देते है पर फिर भी हमें सफलता कम ही मिलती है| किसी भी कार्य की सम्पूर्णता बिना अनुभव के नहीं हो सकती है हम चाहे कितना भी ज्ञानी और जानकार हो वह उस कार्य और समय के लिए तो ठीक है पर जब समस्या नहीं बन रही होती है तो किसी ना किसी का उस कार्य के प्रति अनुभव् या स्वंम का अनुभव ही  उस कार्य की सफलता का पूरक बनता है| 

    हम अनुभव के महत्ता को कम नहीं कर सकते है| अनुभव हमें बिना शेयरिंग, आपस के जानकारी के अदान-प्रदान, परसपर संपर्क और बात-चीत के नहीं मिल सकते है, जितना ही हम ज्ञान के साथ-साथ  अपने अनुभव को साझा करंगे या आदान प्रादान करंगे हम समस्या के समाधान को उतनी ही आसानी से हल कर सकते है| हम लाख बीमारी से परिचित हो हमें सही और अच्छे  डाक्टर का पता यदि नहीं होगा हम उस बीमारी का सही से इलाज नहीं करा सकते है हम यदि उस बीमारी को एक दूसरे से शेयर करे तो हो सकता है की किसी को उस बीमारी के लिए सही इलाज हेतु सही डाक्टर का पता चल जाय और हम ठीक हो जाय| क्योकि किसी दूसरे का उस बीमारी  के में पाया गया समाधान हमें उसके द्वारा मिल सकता है और यह प्राय: पाया जाता है की बहुत से लोग सही डाक्टर के संपर्क में ना आने से इलाज में देर हो जाता है और उनका पैसा और समय दोनों खराब हो जाता जबतक वह सही डाक्टर के संपर्क में आते है| सही डाक्टर मिलाने पर भी जबतक हम उससे आने बीमारी को सही तरीके से शेयर नहीं करंगे तो वह सही इलाज नहीं कर सकेगा| वैसे भी यह सच है कि हम किसी भी चीज को जबतक छिपाते रहंगे उसका हल हमें सही रूप से नहीं मिलेगा, जीवन को कुछ पहलू को छोड़ कर हमें कभी किसी चीज के बारे में अपनो से  शेयर करने में कभी नहीं हिचकना चाहिए क्योकि हो सकता है किसी ना किसी अपने जान पहचान के पास उस समस्या का समाधान हो या जानकारी हो  जिसके माध्यम से हम उस समस्या का समाधान आसानी से पा सकते हो| कई बार शेयरिंग से बड़ा बड़ा काम बड़े ही आसानी से हल हो जाते है जिसके लिए हम बहुत समय से परेशान रहते है, जैसे की हमें कही अनजान जगह दूर जाना है और हम वहा से पूरी तरह से अनजान है तो दिमाग में कई तरह के क्याल अछे बुरे परेशान करते रहते है परन्तु हम जब इसे शेयर करते रहे तो हो सकता है कोई ऐसा मिले जिसे इसके बारे में सब कुइछ मालूम हो और इसे बड़े ही आसानी से हलकर सकता हो| समाज  और सामाजिक परिवेश का सामाजिक जीवन में बहुत ही बहुमूल्य उपयोग है जो कि हमें मेडसिन के रूप में  मुफ्त में हमें शेयरिंग के माध्यम से मिल जाती है  और कभी कभी आपस के लेन – देन का सहयोग बड़े से बड़े काम को आसानी से हल कर देते है| मनुष्य और समाज में संकोच और घमंड एक ऐसी बीमारी है जिसका कोई इलाज किसी के पास नहीं है| इस बीमारी के कारण ही समाज और भी बीमार होता जा रहा है और समस्याए दिन पर दिन बढती जा रही है| 

       यह कहावत चरितार्थ है की मुफ्त में में कोई सलाह भी नहीं देता है और मनुष्य को प्यास लगाने पर पानी स्वंम नहीं मिल जाती उसे ही पानी की तलाश करनी पडती है ठीक उसी प्रकार समस्या के समाधान हम बिना शेयरिंग के नहीं पा सकते है यह एक ऐसा माद्यम है की हमें कभी कभी बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान बहुत ही छोटे रूप में मिल जाता है जिसके लिए हम अत्यंत ही परेशान हो सकते है| समाज के हर व्यक्ति के पास पाने अपने ज्ञान और सामर्थ्य के अनुसार किसी न निसी कार्य का अनुभव रहता है जो किसी अन्य के लिए शेयरिंग के द्वारा शोसल मेडेसिंन के रूप में मिल सकता है और वह सफल हो सकता है| अनुभव के ब्बरे में हमें किसी को भी इग्नोर नहीं करना चाहिए क्योकि बहुत से ऐसे समस्या है जो देखने में छोटी है पर हम उसका हल नहीं पा सकते है और कोई दुसरा उसे आसानी से हल कर देता है| शायरिंग एक ऐसा मेडसिन् है जो हमें मुफ़ में मिल सकता है बस हमें परस्पर एक दूसरे से बात - चित के माध्यम से अपने समस्याओ को शेयर करना होता है, और हम किसी का मदद करते है तो कोई दूसरा अवश्य ही हमारे मदद के लिए खडा मिलता है|


हैहयवंश के सामाजिक निर्माण में परिवार की भूमिका

      हमारा समाज पुरातन काल से ही अत्यन ही संगठित रहा है जहा सामाजिक धार्मिक संस्कारित और परपर सहयोग की भावना समाज के हर वर्ग के परिवार में उसके उत्थान और संरचना में सहायक रही है| यही कारण है कि पुरातन परिवारों में एक जुटता और संयुक्तरूप से साथ जीने – मरने और प्यार-मोहबत कूट-कूट कर भरा रहता था| परिवार के सदस्यों के बीच एक दूसरे के प्रति समर्पण की भावना ही ईसका मुख कारण था की परिवार संगठित और सुदृण हूआ करता था, परिवार के मुखिया मुखिया की भूमिका राजा की तरह निस्वार्थ रूप से हर सदस्य के लिए सामान था जो एक बड़ा कारण था की हर सदस्य उसकी इज्जत और आदर का भाव रखता था| संयुक्त परिवार में रहने वाले कभी भी दुःख और कठनाई का अनुभव नहीं करते थे और खुशी के अवसर हमेशा दुगनी रहती थी चाहे वह कोई अवसर हो| संस्युक्त परिवार का मुखिया चाहे वह परुष/महिला कोई भी वह परिवार के हर सुख और दुःख को पहले अपना समझता था और परिवार के हर सदस्य का पूरा ध्यान रखता था परिवार में स्वत्रंतता समान रूप से हुआ करती थी जिसमे कोई भेदभाव नहीं होते थे| परिवार का मुखिया ही  निर्णय के लिए अधिकृत था और उसका निर्णय ही अंतिम होता था| सभी एक साथ थे तो सभी का सुख  दुःख सभी के लिए एक सामान था|

       इस प्रकार एक परिवार के रूप में जो संस्कार और धर्म बनते थे उसी का पालन परिवार के हर सदस्य के लिए अनिवार्य था|, और परिवार को साथ लेकर चलने के लिए योग्यता अनुसार मुखिया का चुनाव होते रहते थे| इस प्रकार किसी कार्य को संपन्न करने के लिए किसी अन्य की जरुरत परिवार को नहीं होती थी क्योकि आपस में कार्य को बाट कर लेने से सभी को आसानी होती थी, जब हाथ अधिक होते है तो कार्य आसान हो ही जाते है और इस प्रकार परिवार का हर सदस्य अपनी योग्यता और सामर्थ्य के अनुसार परिवार को चलाने में अपनी भूमिका निभाता था, आदर, धर्म और संस्कार हर सदस्य को बाधे रखता था जिसके कारण अंतर का भाव की कम और ज्यादा कार्य या क्षमता परिवार के सदस्य के रूप में कभी प्रशन नहीं थे| लेकिन यह सच है की परिवर्तन युगों के लिए होते है, और आज वह संयुक्त परिवार का दृश्य समाज से ओझिल होता जा रहा है और एक बड़ा सामाजिक परिवर्तन हो रहा है जिसमे संयुक्त परिवार के कुछ कमी और बुराई आज उसके विनाश का कारण बन रहे है| यह समय की जरुरत बनाती  जा रही है| पहले समाज में जनसंख्या और आबादी कम थी, चीजे आसानी से प्राप्त थी, सुविधा की जरुरत कम थी, यदि परिवार का एक सदस्य भी कमाता था तो परिवार की जरुरत पूरी आर लेता था, हम प्रकिर्ति के नजदीक थे और उसी पर निर्भर रहते थे, जरुरत के अनुसार आज हमें वह समय अब बदलने को मजबूर कर रहा है| आज का संयुक्त परिवार एक पीढ़ी पिता-पुत्र का ही देखने को मिल रहा है और भविष्य में परिवार पति -पत्नी या एकल भी हो सकता है जिस तेजी से हम बदल रहे है, ठीक उसी प्रकार से हमारे संस्कार भी बदल रहे है हम आज की पीढ़ी में १-२ पीढ़ी के सदस्यों को पहचान भी नहीं रहे है, और यह भी सच होगा की पिता – पुत्र  को भी ना पहचाने इसमे कोई अनोखी नहीं है| जिस तेजी से परिवार का विघटन हुआ उससे कही ज्यादा तेजी से हमारे संस्कार विघटित हो रहे है| इसका एक उदाहरण है कि पहले लोग एक दूसरे सदस्य को आमने – सामने से मिलकर श्रधा और भाव के साथ गले मिलते थे या पैर छू कर आशीर्वाद लेते थे महिलाये तो खासकर गले मिलकर भाव-विभोर होने के साथ प्यार – गम के आंशु तक निकल जाती थे वह इस लिए की कही वो एक दूसरे से कभी बिछुड  ना जाय या फिर कब मिले| प्यार और स्नेह का भाव दिलो में थे लोग समर्पण का भाव एक दूसरे के लिए रखते थे परन्तु आज क्या है हम धीरे धीरे उस श्रधा  भाव को भूलते जा रहे है आज श्रधा का भाव हेल्लो कह कर पूरा होने लगे है तथा लोग आशीर्वाद के नाम पर सर ही हिला देते है| यह भी सच है की समय की मांग अनुसार मनुष्य ने अपने जीवन-यापन को बदलने को मजबूर किया है, अब किसी भी संयुक्त परिवार को एक अकेला व्यक्ति नहीं चला सकता,  साधन और अवश्यकताए बढती जा रही है, जिसे पूरा करने में मनुष्य का सारा समय निकल जता है, साधन ने लोगो के बीच दुरिया बढ़ा दी है मनुष्य अपनी या परिवार  की जरुरत पूरी करने के लिए परिवार से दूर होता  जा रहा है ऐसे में संयुक्त परिवार का महत्त्व समाप्त होने लगे है| 

      संयुक्त परिवार के इसी विघटन के नाते आज समाज में अनेक प्रकार के बुराई और भ्रष्टाचार फ़ैल रहे है| इन सभी में जो सबसे बड़ी चीज विघटन का कारन है एक दूसरे के प्रति इर्ष्या , अहंकार और सा असंतोष परिवार के साथ साथ समाज और देश के लिए घातक हो रहा है| मनुष्य समय के इस परिवर्तन में अपने आप को इतने तेजी से बदलना छह रहा की उसे दूसरे की परवाह नहीं कि उसके स्वंम फायदे के लिए किसी अन्य का नुकशान हो रहा है| और इस सब में दूसरा जो कारण है वो परिवारां में असफलता का मिलना जिसे मनुष्य अपने  को दोषी ना मानते हुए इसके लिए अन्य को दोषी समझता है और फिर दूसरे अवगुण  जैसे इर्ष्या, कलह, और हीन भावना का जन्म होते जा रहा है और हम और तेजी से विघटन की ओर जा रहे है| इसके साथ उंच-नीच का भाव और एक दूसरे को नीच्गा दिखाना, दूसरों के सफलता असे इर्ष्या करना और असफलता पर खुशी मनाना आपसी घमंड और कलह ने सनुक्त परिवार को बिखराव के तरफ ले जा रहा है| 

     इस संभी के लिए हमारी सांसारिक शिक्षा और संस्कार में कमी ही मुख्या कारण है, हमारे परिवार तो तेजी से शिक्षित हो रहे है पान्तु उतने ही तेजी से हमारे संस्कार में कमी हो रही है| इन सभी के लिए हम आप कही ना कही से जिमेद्दर है क्योकि तेजी से आगे बढ़ाने की छह में अपने –पराया के अंतर को बढ़ावा दे रहे है परिवार को अपने तक ही समझ रहे है तो फिर हम दूसरों से कैसे अछे का उम्मीद कर सकते है, ताली तो दोनों हाथ के बजाने से बजेगी, हम जबतक एक दूसरे के शुख-दुःख व् सफलता – असफलता के लिए एक साथ नही निभेंगे तबतक हम सामाजिक विकास न तो अपना कर सकते है ना ही समाज का| ऐसे में किसी देश समाज और परिवार में कैसे खुशहाली और सुख की कामना कैसे  कर सकते है| और जब तक हम खुश और सुख नहीं रहंगे  तबतक ना तो परिवार का निर्माण कर सकते है ना हे समाज का| स्वस्थ परिवार के साथ ही एक स्वस्थ समाज का निर्माण हो सकता है| समाज के विघटन एक और बड़ा कारन हमारी अशिक्षा और आर्थिक तगी भी है, यह बहुत हद तक सच भी है क्योकि हमारा समाज अन्य समाज से अताधिक पिछडा और गरीब रहा है|

       हम अपने रूढवादी परम्परा और कार्य को बदलना नहीं चाहते थे और नाही अपना निवास स्थान और व्यपार जिसके कारण समय ने हमें काफी पीछे कर दिया. हमने समय के अनुसार शिक्षा के महत्व को भी नहीं समझा और जब तक यह बात समझ आती देर हो चकी थी| पर अब पछताने से कुछ नहीं हो सकता है यह भी सच है हमने अब बदलने की चाह कर ली है आज नहीं तो कल हमें इसमे सफलता अवश्य मिलेगी बस सब्र से हमें धीरे धीरे आगे की ओर बढ़ाते रहना है और उस ऊँचाई को भी अवश्य पाना है जिसके लिए हम संकल्पित  है| हमें अपने धार्मिक, संस्कार और परस्पर आपसी प्रेम-समर्पण की भावना के साथ संयुक्त परिवार के अछाईयो  को ग्रहण करते हुए पहले एक स्वस्थ परिवार का निर्माण करना होगा तभी हम एक स्वस्थ समाज की कल्पना कर सकते है| किसी भी परिवार में संबंधो का सामंजस्य एक दूसरे के प्रति आदर भाव, और सबसे बड़ा समर्पण जो प्रेम का भाव देता है वह  एक आदर्श परिवार स्थापित कर सकता है और फिर  एक आदर्श समाज और राष्ट का निर्माण हम कर सकते  है|


सामाजिक समस्याये : कारण व् निवारण


          वर्तमान परिवेश में हैहयवंश समाज की सामाजिक स्थिति एक ऐसे मोड़ पर पहुच चुका है कि समाज कई वर्गों में विभाजित होने के कगार पर पंहुचा नज़र आ रहा है| जिसका एक मुख्य कारण समाज में शिक्षा का अभाव है| आज समाज का जो परिवार शिक्षित और संपन्न हो रहा है उनमे से ज्यादा परिवार या तो समाज से दूर हो जा रहा है अथवा वह अपना अलग वर्ग और विचार बनाते हुए अपने को समाज से अलग समझता है|


             समाज में आज की यह स्थिति निश्चित ही अत्यंत सोचनीय और भयावह बनती जा रही है| आज से लगभग ५० वर्षो पूर्व जब अपने समाज की कोई वैश्विक विशेष पहचान हैहय वंश के रूप में नहीं थी| समाज के बहुत से वर्ग और परिवार विभिन्न स्थानों पर देश, समय, काल और परिस्थिति, तथा जीविका अनुसार विभिन्न प्रकार के कार्य करते हुए, अपनी जीविका एक समाज के रूप में चला रहे थे| जो पूर्णत: कर्म आधारित था| उसी अनुसार लोगो ने अपने आप को समाहित कर विभिन्न वर्गों में विकसित कर कर्म अनुसार ही एक उपनाम भी दे दिया| साथ ही वंश/जाति के रूप में अज्ञानता, अशिक्षा और परिश्थिति वश अपने वर्ण व् जातियों से जोड़ लिया, जिसका कारण रहा की हैहयवंश के पुन: निर्माण/स्थापना के समय हमें बहुत से अन्य वर्ण जाति के नामो का प्रयोग देखने को मिल रहा है| हैहय वंश की आज सामाजिक ब्यवस्था में यह एक बड़ा कारण है कि हम एक वश जाति को मानते हुए भी विभिन्न उपनामों के विभक्तिकरण के कारण एक साथ समाहित नहीं हो पा रहे है|

            हैहयवंश समाज की स्थापना उपरांत पहला कारण जैसे जैसे लोग शिक्षा ग्रहण करने लगे और संपन्न होने लगे तथा नौकौरी पेशा को जीवका का साधन बनाने लगा| दुसरा कारण शिक्षा उपरांत जो वर्ग ब्यवसाय से ही जुड़ा वह भी धीरे धीरे धनाड्य और संस्कारिक होने के कारण विचारो में बदलाव स्पस्ट होने के साथ वह वर्ग भी अपनी अलग पहचान चाहता है|

            आज वर्तमान में उपरोक्त दोनों कारणों के फलस्वरूप समाज में हैहयवंशीय क्षत्रिय समाज की पुन: स्थापना और प्रदुर्भाविक रूप से प्रतिष्ठा बनाने की  कारण लोगो के अन्दर स्वाभिमान वश अपने वंश/जाति और इतिहास का ज्ञान भी होने लगा| जिसके फल स्वरुप परिवर्तन आना स्वाभाविक ही था| क्योकि जब हम अपने क्षत्रिय वंश की इतिहास और संस्कार के साथ अपने समाज को एक स्वर्णमयी युग की कथानक का ज्ञान होता गया, क्षत्रियत्व का जन जागरण होना स्वाभाविक है| दूसरी तरफ आज भी समाज का एक बड़ा वर्ग जो अभी भी शिक्षा, अज्ञानता और गरीबी के अभाव में अपनी जीविका और परिवार के भलन -पोषण तक ही लगा रहा है| वह इस वंश के इतिहास और क्षत्रियता के ज्ञान से अछूता है| इसमे भे कुछ वर्ग तो अपनी रुध्वादी सोच और धार्मिक/कार्मिक और सामाजिक स्वार्थ के कारण अपने को इस सामाजिक परिवर्तन के ज्ञान इतिहास और जाति को समझने को तैयार नहीं है, और वह अपने पुरानी परम्परा, अज्ञान, और भावना से प्रेरित विचारधारा, से अपने को अलग करने को तैयार नहीं है|

            अब ऐसी परिस्थिति में समाज में विचारो और कार्यो के कारण मतभेद साफ़ है, अत: सामाजिक वर्गों में बटवारा रोकना संभव प्रतीत नही होता है| यह सामाजिक एकता की एक बड़ी बाधा है इससे ना सिर्फ संगठन का निर्माण जिसमे संख्या का महत्व अधिक होता है, प्रभावित हो रहा है वरन शिक्षा  और संस्कार को भी हम नहीं फैला या बढ़ा पा रहे है|\

           आज हैहयवंश समाज की स्थिति पहले से कही अधिक सुद्र्ड और विस्तारित हो रही है| आज हैहयवंश समाज से अपने को किसी ना किसी रूप से जोड़ने वाले लोगो की संख्या में भी लगातार बढ़ोतरी हो रही है| जो कुछ हद तक एक सुखद स्थिति है पर आधे अधूरे और अज्ञानता के साथ यह पूर्ण नहीं हो सकता है| आज जब समाज अपने को हैहयवंश से जोड़ता है और लिखता है साथ है, ईस्टदेव के रूप में श्री राज राजेस्वर सहस्त्राबाहू भगवान् की पूजा कर रहा है तो फिर हमें पूर्ण रूप से अपने वंश और जाति के पौराणिक परम्परा अनुसार पूर्ण रूप से हैहयवंशीय क्षत्रिय ही बनना होगा| अत: हमें अपने सभी भेद-भाव और हठधर्मिता, अज्ञानता और अशिक्षा को शिखा के ज्ञान के प्रक्षा से दूर करते हुए अपने क्षत्रिय वंश की इतिहास और संस्कार को अपनाना ही होगा| तभी हम एक समाज के रूप में संगठित हो सकगे| सभी मिलकर जब मेहनत करते है तो घर की सम्पति बढती है इसी तरह सभी जब मिलजुलकर पूजा-पाठ करते है तो सुख-शांति बढती है| धन के लिए नहीं, सुख शांति के लिए सामाजिक विकास के लिए भी सामूहिक प्रयास करे|

             क्योकि यह सच है की शिक्षा मनुष्य के विचारो ज्ञान और कार्यो  को कही ना कही प्रभावित करता है, हमें इसे स्वीकार करते हुए अपने परिवार के बच्चों को शिक्षा के लिए आगे लाना ही होगा| इस सामाजिक परिवर्तन में शिक्षा की भूमिका को नहीं छोड़ सकते है, हम धीरे धीरे ही सही पर हम शिक्षा के विकास की ओर अग्रसर हो रहे है| शिक्षा का प्रभाव उन सभी परिवारों में चाहे वह नौकरी हो या ब्यवसाय दोनों जगह देखने को भी मिल रहे है| 
शिक्षा के जन-जागरण को और तीव्र गति से किये जाने की आवश्यकता है| जिससे हैहयवंश समाज का हर ब्यक्ति और परिवार शिक्षित हो सके| जब हम सभी परिवार के साथ विभिन स्थानों पर गाँव, नगर, शहर और जिले तक सभी इस शिक्षा के मुकाम को हाशिल कर सकगे, तो फिर हमारा समाज के संगठन और विकास से हमें कोई हमें रोक नहीं सकेगा|

           हैहयवंश समाज का अभी तक कोई एक पूर्णत: रास्ट्रीय स्तर पर एक संस्था का न हो ना भी समाज के विकास में एक अवरोध है| रास्ट्रीय स्तर पर एक नहीं कई समिति कार्य कर रहे ही| जिनका अपना अपना स्वार्थ है| यही हाल प्रदेश में बनी हुए संगठनो का है, हर जगह कुछ ना कुछ मतभेद बनते जा रहे है जिससे नै संस्थाओ का जन्म होता जा रहा है| यह भी समाज के संगठन और विकास में एक बड़ी बाधा है| किसी भी वर्ग समुदाय के लिए विकसित होने में एक शाश्क्त और संगठित संस्था का होना अनिवार्य है| जिसके माध्यम से रास्ट्रीय स्तर के समस्याओ को जनता/सरकार के बीच ले जाने में सुविचा के साथ प्रभाव बनता है| जन्हा एक तरफ संस्था का अभाव है वही आज तक हमारे समाज की जनसंख्या के भी जानकारी का अभाव है| सबसे पहले समाज को अपने संख्या की गणना कारने का कोई विकल्प बनाना ही होगा| हम बिना जनसंख्या और संस्था के सामाजिक / राजनैतिक सहभागिता की परिकल्पना नहीं कर सकते है| यह कार्य भी शिक्षा के अभाव के कारण ही अधुरा है|
इसी कारन यह आवश्यक है, कि अभी तक समाज के जो लोग शिक्षा के महत्व को समझते हुए शिक्षित हो चुके है| साथ ही वह हैहयवंशीय क्षत्रिय के रूप में स्थापित हो चुके है, तथा वंश व् इतिहास को समझ गए है| उन सभी का यह कर्तब्य और दाइत्व बनता है की वह आगे आकर समाज में शिक्षा और हैहयवंश की परम्परा को समाज के उन लोगो तक पहुचाये जिन्हें इसका ज्ञान नहीं है| क्योकि जबतक  शिक्षित समाज ही अपने को इस सामाजिक प्रक्रिया से दूर रखेगा तो संगठन और विकास हम कैसे करंगे|

            समांज चाहे शिक्षित ही क्यों ना हो, सभ्य ही क्यों न हो समस्याए हर समाज में ब्यापत है| जो समाज के विघटन का कारण बनती है| इन सभी के अतिरिक्त भी समाज आज कई और सारी समस्या से जूझ रहा है, जिससे हम समाज की संगठन और जुड़ने तथा सामाजिक कार्य करने में बड़ा मानते है| जिसमे मुख्य :-

१. शिक्षा –
जो दूसरों को जानता है वह विद्यावान है
जो स्वंय को जानता है वह ज्ञानी||

            आज के परिवेश में शिक्षा का अधिकार सभी को है, शिक्षा के ग्रहण करने और सिखाने की कोई उम्र और सीमा नहीं रह गयी है| ऐसे हम जन्हा अपने नव उदित बच्चो को शिक्षा के लिए स्कूल से लेकर कम से कम इन्टर कालेज तक की शिक्षा दिलाने का प्रयास करना होगा| दूसरी तरफ जो ब्यक्ति किसी कारण से शिक्षा को बीच में ही छोड़ दिए है, उन्हें भी ब्यवसायिक एवं तकनिकी शिक्षा के लिए प्रयास करना चाहिए|  सरकार द्वारा शिक्षा के लिए प्रदान सभी सुविधावो की जानकारी हेतु गाँव स्तर से जिला स्तर तक उपलब्ध विभिन्न संसाधनों और जगहों की जानकारी एकत्र करते हुए हम अपने बच्चो के लिए शिक्षा का प्रबंध करे| हम अपने आस-पास के किसी भी शिक्षित समाज के लोगो से इस करू हेतु संपर्क कर सकते है, क्योकि यह कहावत है की प्यासा ही कुंवा के पास जाता है, कुंवा आप के पास नहीं आयेगा| दूसरा कुछ पाने के लिए परिश्रम करना ही पड़ता है| परिश्रम से प्राप्त चीजों का मूल्य और स्थिरता होती है|शिक्षा को जीवन में ग्रहण करने से पूर्व हमें शिक्षा के बारे कुछ जानकारी भी होनी चाहिए|पढ़ना व् सिखाना कभी बंद नहीं करना चाहिए| ज्ञान और सिख की कोई सीमा नहीं होती है||

२. नौकरी: 
अगर जीवन में सफलता प्राप्त करने है,
तो मेहनत पर विश्वास करे,
किस्मत की आजमाईस तो जुए में होती है

           बेरोजगारी की समस्या। बेरोजगारी का अर्थ होता है – किसी व्यक्ति को उसकी योग्यता और ज्ञान के अनुसार सही काम या नौकरी ना मिल पाना। भारत में बेरोजगारी लोगों के जीवन में दो प्रकार से आक्रमण कर रही है। इनमें दो वर्ग स्पष्ट एवं प्रमुख हैं। पहले वर्ग में वह शिक्षित लाखों लोग आते हैं जो नौकरी और रोजी-रोटी की तलाश में दर-बदर भटक रहे हैं।  ऐसे लोगों के पास  ना ही कोई काम है और ना ही कोई पैसे कमाने का अन्य ज़रिया, जिससे कि वह एक स्वतंत्र जीवन जी सकें।

जन्हा एक निराशावादी ब्यक्ति किसी कार्य में उसका दुष्परिणाम ढूढ़ लेता है
वही आशावादी ब्यक्ति हर एक कठिन कार्य में भी एक अवसर ढूढ़ लेता है|

            सफलता का ना तो कोई मंत्र है ना ही कोई सरल सीधा उपाय, यह तो सिर्फ ज्ञान और परिश्रम का ही फल है|| जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए हर मनुष्य को अपना एक लक्ष्य निर्धारित रखना चाहिए, लक्ष्य विहीन मनुष्य पशुओं के सामान विचरण करता है| इसलिए सबसे पहले जीवन में लक्ष्य का निर्धारण करना चाहिए| जीवन में आप क्या करना चाहते है, पहले यह सुनाश्चित करना चाहिए| फिर उस लक्ष्य को पाने के लिए दृढसंकल्प के साथ जुट जाना चाहिए| मन में यह विश्वाश रखना चाहिए की हम अपने कर्म के विश्वास को सफल होना ही है| जब मनुष्य की सारी शक्तिया जैसे विचारो, समय, स्व्वास्थ, साधन सभी शक्तिया एक साथ मिलकर लक्ष्य की ओर लग जाती है, तो फिर सफकता से कोई नहीं रोक सकता है|

             नौकरी ढूँढने के लिए प्रारंभिक तैयारी सबसे महत्वपूर्ण चरण है. इस तैयारी में आपकी कमजोरियों और प्रवीणताओं का लेखा – जोखा शामिल है. अपनी पसंद के कार्य, वातावरण और कार्य की प्रकृति के बारे में अच्छी तरह सोच – समझ कर उसे सूचीबद्ध करें. फिर किसी एक को कैरियर के रूप में चुन लें. आजकल बाजार में कौन सी कंपनियां आपको इन सभी रूचियों के अनुसार सही बैठती हैं, इसका भी चयन कर लें जिस कंपनी में जाना चाहते हों, उसके बारे में पूरी जानकारी इकट्ठी कर लें. खुद को एक product की तरह तैयार करें और जिस तरह विज्ञापन में उत्पाद की विशेषताओं को highlight करके उसका marketing किया जाता है, खुद की खासियतों को उजागर करते हुए आवेदन करें. नेटवर्किंग जरूर करें, ताकि सही नौकरी तक पहुंचा जा सके.

३. ब्यवसाय: 
अगर अवसर दस्तक ना दे, तो स्वयं ही प्रगति का द्वार बना ले||
दूसरो को सहयोग देकर ही हम उन्हें अपना सहयोगी बना सकते है||

          हमारे समाज की एक और सबसे बड़ी समस्या यह है कि ज्यादातर युवा अपनी शिक्षा के बाद नौकरी करने के विषय में बहुत सोचते हैं। जबकि हमारे युवाओं को सोचना चाहिए कि वह अपनी शिक्षा के बाद अपने ज्ञान की मदद से कोई  लघु उद्योग शुरू करें जिससे उन्हें नौकरी की जरूरत ना पड़े।
जबकि यथार्थ यह है की ब्यवसाय आप को जीवन में अपने कार्य क्षमता और प्रगति की स्वंत्रता प्रदान करता है| आप इस ब्यवसाय के खुद ही मालिक और नौकर होने के कारण, आप की निर्भरता किसी पर नहीं रहती है| इस कार्य में आप का कोइ अधिकारी नहीं होते है जिसके कारण आप इस ब्यवसाय को जैसे चाहे कर सकते है, इसमे हर तरह के किये गए योगदान पर आप का अधिकार होता है| आप चाहे कम या ज्यादा प्राप्त करते है वह आप की ऊपर निर्भर करता है|

         उद्योग शुरू करने का एक सबसे बड़ा लाभ यह है कि वह स्वयं तो सफल बनेंगे साथ ही उनके उद्योग के माध्यम से और भी नौजवानों और देश के नागरिकों को नौकरी के नए अवसर प्राप्त होंगे। चाहे गांव हो या शहर आप हर जगह एक छोटे से व्यापार को शुरू कर सकते हैं और अगर आपके पास शुरू करने के लिए पूंजी नहीं है तो आप बैंक से लोन लेकर भी शुरू कर सकते हैं।

              यह हमारे समाज का सौभाग्य है कि हमें ब्यवसाय अपने पीढ़ी और पुरखो से सौगात के रूप में लाइम है, जिसका जाही ना कही जानकरिया और कार्य विधि हमारे जींस में विद्यमान रहता है| इसका भी लाभ हमें अपने पुश्तनी कार्य, निर्माण और ब्यापार में लगाना चाहिए| क्योकि इसके लिए हमें किसी अन्य प्रकार के सिख और विधि की आवश्यकता नहीं रहती है| हमे बस इसा कार्य को वर्तमान परिवेश और समय की मांग अनुसार करना होगा| किसी भी कार्य की कीमत कम नहीं होती है, इसका स्वरुप बदल सकता है| साथ ही जीविका के लिए किया जाना वाला कोई भी कार्य अच्छा या बुरा नहीं होता है| कार्य की महता हमारे कुशलता और ब्यवहार से नापा जाता है| हमें अपने ब्यवसाय या कार्य को आवश्यकता अनुसार परिवर्तित भी करना चाहिए| परिवर्तन संसार का नियम है चीजे बदलती रहते है| यह आवश्यक होता है की हम कार्य की सफलता और उत्पाद को सरलीकारन किउए जाने सहित उछता प्रदान किये जाने हेतु हाथ के कुचलता के साथ आधुनिक मशीनों और उपकरणों का भी प्रयोग करना होगा| जिससे सामान की लागत कम हो सके और उत्पाद भी बढाया जा सके| क्योकि इसी पर हमारी आर्थिक लाभ निश्चित होती है| 

           इसके साथ हमें सरकारी नियमो और कानून का भी पालन करना आवश्यक है| हम जो भी कार्य करे उसका एक रिकार्ड, आय-ब्याय, और एनी दस्तावेज नियम के अंतर्गत रखना होगा| जब तक हम सही रूप से इमानदारी से कार्य उत्पाद और ब्यापार नहीं सुनिश्चित करंगे, हमें कोइ सरकारे लाभ और छुट प्राप्त नहीं हो सकते है| हम समाज और देश के विकास में तभी भागीदार बन सकते है| जब हम इमानदारी पूर्वक अपना  योगदान अपने कार्य, समाज और देश को देंगे तो हमें इसका प्रतिष्ठापूर्वक सम्मान भी प्राप्त होगा|


जब होता जब हम इसे खो देते है|
हर बड़े की शुरुवात छोटे से ही होती है|

४. स्वास्थ: 

                हमारा स्वास्थ ही हमारी सबसे बड़ी दौलत है, पर इसकी कीमत का अहसाह हमें नहीं होता|

            मनुष्य की सफलता का राज उसका स्वास्थ है, अत: सबसे पहले उसे अपने स्वास्थ का ख्याल रखना चाहिए, फिर उसे अपने पारिवारिक जिम्मेदारी का निर्वहन करना चाहिए जिसमे भी परिवार का स्वास्थ ही सर्वोपरि है| हम धन के पीछे यदि भागते रहे और स्वास्थ ठीक ना होने से हमारा सारा धन दवा और इलाज़ में खर्च कर दे इससे कोई लाभ नहीं है| स्वास्थ के बिना संसार में सब कुछ ब्यर्थ है|

५. परिवार: 

          दुनिया के लिए आप एक परिवार के मुखिया के साथ मात्र बय्क्ति है, पर परिवार के लिए आप पुरी दुनिया है| जिस प्रकार धुप जलाने से पुरे घर में इसकी खुशबु फ़ैल जाती है, उसी प्रकार परिवार का यदि एक ब्यक्ति  शिक्षित बन जाय, भगवान् के भक्ति में लीं हो जाय तो इसका असर पुरे परिवार पर पड़ता है| परिवार हमारे लिए सिर्फ महत्वपूर्ण ही नहीं यह माने तो सब कुछ है| आज के परिवेश में संयुक्त का चलन लगभग समाप्त हो रहा है, जो की परिवार के स्वस्थ परम्परा के विपरीत है| संयुक्त परिवार की बहुत से फायदे थे| जिसमे सदस्यों को एक दुसरे के प्रति प्रेम भाव रहा करता था| परिवार का मुखिया ही परिवार का मुख संचालक हुवा करता था, जिससे उसके दिशा निर्देश में परिवार संचालित रहता था| जिससे सदस्यों को परिवार की निर्भरता कम रहती थी, वह अपने कार्य और कैरियर के प्रति सजग और स्वतंत्र रहते हुए अपने लक्ष्य को आसानी से प्राप्त कर सकता था|

परिवार प्यार का दुसरा नाम है,  अपने परिवार को समय दीजिये|
इससे प्रेम और  विश्वास का रिश्ता मजबूत बनता है|
याद रखना कही जिन्दगी की भाग-दौड़ में परिवार पीछे ना छुट जाय||

६. सामाजिक परिवेश: 

              स्वीकार करने की हिम्मत और सुधार करने की नियत हो तो इन्शान बहुत कुछ कर सकता है| सामाजिक लोग बुरे नहीं होते पर जब वो हमारे मतलब के नहीं होए तो हमें अछे नहीं लगते है| जिस तरह परिवार के बिना ब्यक्ति अधुरा है, उसी प्रकार समाज के बिना ब्यक्ति/परिवार भी अधुरा है| ब्यक्ति के स्वभाव अनुसार उसे हर ख़ुशी और गम को प्रदर्शन करने की इच्छा बनी रहती है, जिससे उसे मानसिक सुख की प्राप्ति होती है| हम अपने शुख और दुःख को बिना अपने पास अपनो के ब्यक्त नहीं कर सकते है, ओ बिना समाज के संभव नहीं है| समाज की आवश्यकता एक बार सिमित रूप से ख़ुशी के लिए हो भी सकती है, पर गम को आप बिना समाज के नहीं बाँट सकते है| समाज के निर्माण में यह आवश्यक है की हम अछे और बुरे की पहचान रख्खे| जब हम किसी के प्रति प्रेम और समर्पण का भाव रखते है तो धीरे धीरे यही प्रेम और सर्मपण उन सभी से मिलकर एक समाज का निर्माण कर देते है| जिसका मूल्य हमरे सामजिक परिवेश में हमें मिलता है| समाज के बीच रहने और मिलने जुलने से हम बहुत से चोजो का ज्ञान बिना किसी अतिरिक्त  परिश्रम और कोशिश के पा लेते है| 

जिंदगी जीने के दो तरीके है,एक जो पसंद है, उसे हाशिल करना सीख ले|
दुसरा जो हासिल किया है, उसे प्राप्त करना सीख ले||

७. सामाजिक संवाद: 

           प्रेरणा वह है जो आप को काम करने के लिए प्रेरित करती है, और आदत वह है जो आप की निरन्तरता प्रदान करती है| अगर आप सकराताम्क बोलेंगे- सोचेंगे तो होगा भी वैसा ही। सकराताम्क लोगों के साथ रहने से हमारे आस- पास सकराताम्क किरणें बनी रहती हैं। दरअसल हमारे पास दो तरह के बीज होते हैं, सकारात्मक विचार  और नकारात्मक विचार  जो आगे चलकर हमारे नजरिये और व्यवहार रूपी पेड़ का निर्धारण करते हैं। हम जैसा सोचते हैं, वैसा ही बन जाते हैं। इसलिए कहा जाता है कि जैसे हमारे विचार होते हैं, वैसा ही हमारा आचरण होता है। हमारे विचारों पर हमारा स्वयं का नियंत्रण होता है इसलिए यह हमें ही तय करना होता है कि हमें सकारात्मक सोचना है या नकारात्मक। यह पूरी तरह से हम पर निर्भर करता है कि हम अपने दिमाग रूपी जमीन में कौन- सा बीज बोना चाहते हैं। थोड़ी सी समझदारी से हम कांटेदार पेड़ को महकते फूलों के पेड़ में बदल सकते हैं। अगर आपको अपने जीवन में सफल होना है तो आपको आज से ही अपनी सोच सकारात्मक बनानी होगी।

भलाई करना कर्तब्य नहीं, आनंद है, क्योकि यह स्वास्थ और सुख में ब्रुधि करता है|
जिंदगी जीने के दो तरीके हैएक जो पसंद है उसे हाशिल करना सीख ले
दुसरा जो हासिल किया है उसे प्राप्त करना सीख ले||


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