बुधवार, 3 जून 2020

सामाजिक समस्याये : कारण व् निवारण


          वर्तमान परिवेश में हैहयवंश समाज की सामाजिक स्थिति एक ऐसे मोड़ पर पहुच चुका है कि समाज कई वर्गों में विभाजित होने के कगार पर पंहुचा नज़र आ रहा है| जिसका एक मुख्य कारण समाज में शिक्षा का अभाव है| आज समाज का जो परिवार शिक्षित और संपन्न हो रहा है उनमे से ज्यादा परिवार या तो समाज से दूर हो जा रहा है अथवा वह अपना अलग वर्ग और विचार बनाते हुए अपने को समाज से अलग समझता है|


             समाज में आज की यह स्थिति निश्चित ही अत्यंत सोचनीय और भयावह बनती जा रही है| आज से लगभग ५० वर्षो पूर्व जब अपने समाज की कोई वैश्विक विशेष पहचान हैहय वंश के रूप में नहीं थी| समाज के बहुत से वर्ग और परिवार विभिन्न स्थानों पर देश, समय, काल और परिस्थिति, तथा जीविका अनुसार विभिन्न प्रकार के कार्य करते हुए, अपनी जीविका एक समाज के रूप में चला रहे थे| जो पूर्णत: कर्म आधारित था| उसी अनुसार लोगो ने अपने आप को समाहित कर विभिन्न वर्गों में विकसित कर कर्म अनुसार ही एक उपनाम भी दे दिया| साथ ही वंश/जाति के रूप में अज्ञानता, अशिक्षा और परिश्थिति वश अपने वर्ण व् जातियों से जोड़ लिया, जिसका कारण रहा की हैहयवंश के पुन: निर्माण/स्थापना के समय हमें बहुत से अन्य वर्ण जाति के नामो का प्रयोग देखने को मिल रहा है| हैहय वंश की आज सामाजिक ब्यवस्था में यह एक बड़ा कारण है कि हम एक वश जाति को मानते हुए भी विभिन्न उपनामों के विभक्तिकरण के कारण एक साथ समाहित नहीं हो पा रहे है|

            हैहयवंश समाज की स्थापना उपरांत पहला कारण जैसे जैसे लोग शिक्षा ग्रहण करने लगे और संपन्न होने लगे तथा नौकौरी पेशा को जीवका का साधन बनाने लगा| दुसरा कारण शिक्षा उपरांत जो वर्ग ब्यवसाय से ही जुड़ा वह भी धीरे धीरे धनाड्य और संस्कारिक होने के कारण विचारो में बदलाव स्पस्ट होने के साथ वह वर्ग भी अपनी अलग पहचान चाहता है|

            आज वर्तमान में उपरोक्त दोनों कारणों के फलस्वरूप समाज में हैहयवंशीय क्षत्रिय समाज की पुन: स्थापना और प्रदुर्भाविक रूप से प्रतिष्ठा बनाने की  कारण लोगो के अन्दर स्वाभिमान वश अपने वंश/जाति और इतिहास का ज्ञान भी होने लगा| जिसके फल स्वरुप परिवर्तन आना स्वाभाविक ही था| क्योकि जब हम अपने क्षत्रिय वंश की इतिहास और संस्कार के साथ अपने समाज को एक स्वर्णमयी युग की कथानक का ज्ञान होता गया, क्षत्रियत्व का जन जागरण होना स्वाभाविक है| दूसरी तरफ आज भी समाज का एक बड़ा वर्ग जो अभी भी शिक्षा, अज्ञानता और गरीबी के अभाव में अपनी जीविका और परिवार के भलन -पोषण तक ही लगा रहा है| वह इस वंश के इतिहास और क्षत्रियता के ज्ञान से अछूता है| इसमे भे कुछ वर्ग तो अपनी रुध्वादी सोच और धार्मिक/कार्मिक और सामाजिक स्वार्थ के कारण अपने को इस सामाजिक परिवर्तन के ज्ञान इतिहास और जाति को समझने को तैयार नहीं है, और वह अपने पुरानी परम्परा, अज्ञान, और भावना से प्रेरित विचारधारा, से अपने को अलग करने को तैयार नहीं है|

            अब ऐसी परिस्थिति में समाज में विचारो और कार्यो के कारण मतभेद साफ़ है, अत: सामाजिक वर्गों में बटवारा रोकना संभव प्रतीत नही होता है| यह सामाजिक एकता की एक बड़ी बाधा है इससे ना सिर्फ संगठन का निर्माण जिसमे संख्या का महत्व अधिक होता है, प्रभावित हो रहा है वरन शिक्षा  और संस्कार को भी हम नहीं फैला या बढ़ा पा रहे है|\

           आज हैहयवंश समाज की स्थिति पहले से कही अधिक सुद्र्ड और विस्तारित हो रही है| आज हैहयवंश समाज से अपने को किसी ना किसी रूप से जोड़ने वाले लोगो की संख्या में भी लगातार बढ़ोतरी हो रही है| जो कुछ हद तक एक सुखद स्थिति है पर आधे अधूरे और अज्ञानता के साथ यह पूर्ण नहीं हो सकता है| आज जब समाज अपने को हैहयवंश से जोड़ता है और लिखता है साथ है, ईस्टदेव के रूप में श्री राज राजेस्वर सहस्त्राबाहू भगवान् की पूजा कर रहा है तो फिर हमें पूर्ण रूप से अपने वंश और जाति के पौराणिक परम्परा अनुसार पूर्ण रूप से हैहयवंशीय क्षत्रिय ही बनना होगा| अत: हमें अपने सभी भेद-भाव और हठधर्मिता, अज्ञानता और अशिक्षा को शिखा के ज्ञान के प्रक्षा से दूर करते हुए अपने क्षत्रिय वंश की इतिहास और संस्कार को अपनाना ही होगा| तभी हम एक समाज के रूप में संगठित हो सकगे| सभी मिलकर जब मेहनत करते है तो घर की सम्पति बढती है इसी तरह सभी जब मिलजुलकर पूजा-पाठ करते है तो सुख-शांति बढती है| धन के लिए नहीं, सुख शांति के लिए सामाजिक विकास के लिए भी सामूहिक प्रयास करे|

             क्योकि यह सच है की शिक्षा मनुष्य के विचारो ज्ञान और कार्यो  को कही ना कही प्रभावित करता है, हमें इसे स्वीकार करते हुए अपने परिवार के बच्चों को शिक्षा के लिए आगे लाना ही होगा| इस सामाजिक परिवर्तन में शिक्षा की भूमिका को नहीं छोड़ सकते है, हम धीरे धीरे ही सही पर हम शिक्षा के विकास की ओर अग्रसर हो रहे है| शिक्षा का प्रभाव उन सभी परिवारों में चाहे वह नौकरी हो या ब्यवसाय दोनों जगह देखने को भी मिल रहे है| 
शिक्षा के जन-जागरण को और तीव्र गति से किये जाने की आवश्यकता है| जिससे हैहयवंश समाज का हर ब्यक्ति और परिवार शिक्षित हो सके| जब हम सभी परिवार के साथ विभिन स्थानों पर गाँव, नगर, शहर और जिले तक सभी इस शिक्षा के मुकाम को हाशिल कर सकगे, तो फिर हमारा समाज के संगठन और विकास से हमें कोई हमें रोक नहीं सकेगा|

           हैहयवंश समाज का अभी तक कोई एक पूर्णत: रास्ट्रीय स्तर पर एक संस्था का न हो ना भी समाज के विकास में एक अवरोध है| रास्ट्रीय स्तर पर एक नहीं कई समिति कार्य कर रहे ही| जिनका अपना अपना स्वार्थ है| यही हाल प्रदेश में बनी हुए संगठनो का है, हर जगह कुछ ना कुछ मतभेद बनते जा रहे है जिससे नै संस्थाओ का जन्म होता जा रहा है| यह भी समाज के संगठन और विकास में एक बड़ी बाधा है| किसी भी वर्ग समुदाय के लिए विकसित होने में एक शाश्क्त और संगठित संस्था का होना अनिवार्य है| जिसके माध्यम से रास्ट्रीय स्तर के समस्याओ को जनता/सरकार के बीच ले जाने में सुविचा के साथ प्रभाव बनता है| जन्हा एक तरफ संस्था का अभाव है वही आज तक हमारे समाज की जनसंख्या के भी जानकारी का अभाव है| सबसे पहले समाज को अपने संख्या की गणना कारने का कोई विकल्प बनाना ही होगा| हम बिना जनसंख्या और संस्था के सामाजिक / राजनैतिक सहभागिता की परिकल्पना नहीं कर सकते है| यह कार्य भी शिक्षा के अभाव के कारण ही अधुरा है|
इसी कारन यह आवश्यक है, कि अभी तक समाज के जो लोग शिक्षा के महत्व को समझते हुए शिक्षित हो चुके है| साथ ही वह हैहयवंशीय क्षत्रिय के रूप में स्थापित हो चुके है, तथा वंश व् इतिहास को समझ गए है| उन सभी का यह कर्तब्य और दाइत्व बनता है की वह आगे आकर समाज में शिक्षा और हैहयवंश की परम्परा को समाज के उन लोगो तक पहुचाये जिन्हें इसका ज्ञान नहीं है| क्योकि जबतक  शिक्षित समाज ही अपने को इस सामाजिक प्रक्रिया से दूर रखेगा तो संगठन और विकास हम कैसे करंगे|

            समांज चाहे शिक्षित ही क्यों ना हो, सभ्य ही क्यों न हो समस्याए हर समाज में ब्यापत है| जो समाज के विघटन का कारण बनती है| इन सभी के अतिरिक्त भी समाज आज कई और सारी समस्या से जूझ रहा है, जिससे हम समाज की संगठन और जुड़ने तथा सामाजिक कार्य करने में बड़ा मानते है| जिसमे मुख्य :-

१. शिक्षा –
जो दूसरों को जानता है वह विद्यावान है
जो स्वंय को जानता है वह ज्ञानी||

            आज के परिवेश में शिक्षा का अधिकार सभी को है, शिक्षा के ग्रहण करने और सिखाने की कोई उम्र और सीमा नहीं रह गयी है| ऐसे हम जन्हा अपने नव उदित बच्चो को शिक्षा के लिए स्कूल से लेकर कम से कम इन्टर कालेज तक की शिक्षा दिलाने का प्रयास करना होगा| दूसरी तरफ जो ब्यक्ति किसी कारण से शिक्षा को बीच में ही छोड़ दिए है, उन्हें भी ब्यवसायिक एवं तकनिकी शिक्षा के लिए प्रयास करना चाहिए|  सरकार द्वारा शिक्षा के लिए प्रदान सभी सुविधावो की जानकारी हेतु गाँव स्तर से जिला स्तर तक उपलब्ध विभिन्न संसाधनों और जगहों की जानकारी एकत्र करते हुए हम अपने बच्चो के लिए शिक्षा का प्रबंध करे| हम अपने आस-पास के किसी भी शिक्षित समाज के लोगो से इस करू हेतु संपर्क कर सकते है, क्योकि यह कहावत है की प्यासा ही कुंवा के पास जाता है, कुंवा आप के पास नहीं आयेगा| दूसरा कुछ पाने के लिए परिश्रम करना ही पड़ता है| परिश्रम से प्राप्त चीजों का मूल्य और स्थिरता होती है|शिक्षा को जीवन में ग्रहण करने से पूर्व हमें शिक्षा के बारे कुछ जानकारी भी होनी चाहिए|पढ़ना व् सिखाना कभी बंद नहीं करना चाहिए| ज्ञान और सिख की कोई सीमा नहीं होती है||

२. नौकरी: 
अगर जीवन में सफलता प्राप्त करने है,
तो मेहनत पर विश्वास करे,
किस्मत की आजमाईस तो जुए में होती है

           बेरोजगारी की समस्या। बेरोजगारी का अर्थ होता है – किसी व्यक्ति को उसकी योग्यता और ज्ञान के अनुसार सही काम या नौकरी ना मिल पाना। भारत में बेरोजगारी लोगों के जीवन में दो प्रकार से आक्रमण कर रही है। इनमें दो वर्ग स्पष्ट एवं प्रमुख हैं। पहले वर्ग में वह शिक्षित लाखों लोग आते हैं जो नौकरी और रोजी-रोटी की तलाश में दर-बदर भटक रहे हैं।  ऐसे लोगों के पास  ना ही कोई काम है और ना ही कोई पैसे कमाने का अन्य ज़रिया, जिससे कि वह एक स्वतंत्र जीवन जी सकें।

जन्हा एक निराशावादी ब्यक्ति किसी कार्य में उसका दुष्परिणाम ढूढ़ लेता है
वही आशावादी ब्यक्ति हर एक कठिन कार्य में भी एक अवसर ढूढ़ लेता है|

            सफलता का ना तो कोई मंत्र है ना ही कोई सरल सीधा उपाय, यह तो सिर्फ ज्ञान और परिश्रम का ही फल है|| जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए हर मनुष्य को अपना एक लक्ष्य निर्धारित रखना चाहिए, लक्ष्य विहीन मनुष्य पशुओं के सामान विचरण करता है| इसलिए सबसे पहले जीवन में लक्ष्य का निर्धारण करना चाहिए| जीवन में आप क्या करना चाहते है, पहले यह सुनाश्चित करना चाहिए| फिर उस लक्ष्य को पाने के लिए दृढसंकल्प के साथ जुट जाना चाहिए| मन में यह विश्वाश रखना चाहिए की हम अपने कर्म के विश्वास को सफल होना ही है| जब मनुष्य की सारी शक्तिया जैसे विचारो, समय, स्व्वास्थ, साधन सभी शक्तिया एक साथ मिलकर लक्ष्य की ओर लग जाती है, तो फिर सफकता से कोई नहीं रोक सकता है|

             नौकरी ढूँढने के लिए प्रारंभिक तैयारी सबसे महत्वपूर्ण चरण है. इस तैयारी में आपकी कमजोरियों और प्रवीणताओं का लेखा – जोखा शामिल है. अपनी पसंद के कार्य, वातावरण और कार्य की प्रकृति के बारे में अच्छी तरह सोच – समझ कर उसे सूचीबद्ध करें. फिर किसी एक को कैरियर के रूप में चुन लें. आजकल बाजार में कौन सी कंपनियां आपको इन सभी रूचियों के अनुसार सही बैठती हैं, इसका भी चयन कर लें जिस कंपनी में जाना चाहते हों, उसके बारे में पूरी जानकारी इकट्ठी कर लें. खुद को एक product की तरह तैयार करें और जिस तरह विज्ञापन में उत्पाद की विशेषताओं को highlight करके उसका marketing किया जाता है, खुद की खासियतों को उजागर करते हुए आवेदन करें. नेटवर्किंग जरूर करें, ताकि सही नौकरी तक पहुंचा जा सके.

३. ब्यवसाय: 
अगर अवसर दस्तक ना दे, तो स्वयं ही प्रगति का द्वार बना ले||
दूसरो को सहयोग देकर ही हम उन्हें अपना सहयोगी बना सकते है||

          हमारे समाज की एक और सबसे बड़ी समस्या यह है कि ज्यादातर युवा अपनी शिक्षा के बाद नौकरी करने के विषय में बहुत सोचते हैं। जबकि हमारे युवाओं को सोचना चाहिए कि वह अपनी शिक्षा के बाद अपने ज्ञान की मदद से कोई  लघु उद्योग शुरू करें जिससे उन्हें नौकरी की जरूरत ना पड़े।
जबकि यथार्थ यह है की ब्यवसाय आप को जीवन में अपने कार्य क्षमता और प्रगति की स्वंत्रता प्रदान करता है| आप इस ब्यवसाय के खुद ही मालिक और नौकर होने के कारण, आप की निर्भरता किसी पर नहीं रहती है| इस कार्य में आप का कोइ अधिकारी नहीं होते है जिसके कारण आप इस ब्यवसाय को जैसे चाहे कर सकते है, इसमे हर तरह के किये गए योगदान पर आप का अधिकार होता है| आप चाहे कम या ज्यादा प्राप्त करते है वह आप की ऊपर निर्भर करता है|

         उद्योग शुरू करने का एक सबसे बड़ा लाभ यह है कि वह स्वयं तो सफल बनेंगे साथ ही उनके उद्योग के माध्यम से और भी नौजवानों और देश के नागरिकों को नौकरी के नए अवसर प्राप्त होंगे। चाहे गांव हो या शहर आप हर जगह एक छोटे से व्यापार को शुरू कर सकते हैं और अगर आपके पास शुरू करने के लिए पूंजी नहीं है तो आप बैंक से लोन लेकर भी शुरू कर सकते हैं।

              यह हमारे समाज का सौभाग्य है कि हमें ब्यवसाय अपने पीढ़ी और पुरखो से सौगात के रूप में लाइम है, जिसका जाही ना कही जानकरिया और कार्य विधि हमारे जींस में विद्यमान रहता है| इसका भी लाभ हमें अपने पुश्तनी कार्य, निर्माण और ब्यापार में लगाना चाहिए| क्योकि इसके लिए हमें किसी अन्य प्रकार के सिख और विधि की आवश्यकता नहीं रहती है| हमे बस इसा कार्य को वर्तमान परिवेश और समय की मांग अनुसार करना होगा| किसी भी कार्य की कीमत कम नहीं होती है, इसका स्वरुप बदल सकता है| साथ ही जीविका के लिए किया जाना वाला कोई भी कार्य अच्छा या बुरा नहीं होता है| कार्य की महता हमारे कुशलता और ब्यवहार से नापा जाता है| हमें अपने ब्यवसाय या कार्य को आवश्यकता अनुसार परिवर्तित भी करना चाहिए| परिवर्तन संसार का नियम है चीजे बदलती रहते है| यह आवश्यक होता है की हम कार्य की सफलता और उत्पाद को सरलीकारन किउए जाने सहित उछता प्रदान किये जाने हेतु हाथ के कुचलता के साथ आधुनिक मशीनों और उपकरणों का भी प्रयोग करना होगा| जिससे सामान की लागत कम हो सके और उत्पाद भी बढाया जा सके| क्योकि इसी पर हमारी आर्थिक लाभ निश्चित होती है| 

           इसके साथ हमें सरकारी नियमो और कानून का भी पालन करना आवश्यक है| हम जो भी कार्य करे उसका एक रिकार्ड, आय-ब्याय, और एनी दस्तावेज नियम के अंतर्गत रखना होगा| जब तक हम सही रूप से इमानदारी से कार्य उत्पाद और ब्यापार नहीं सुनिश्चित करंगे, हमें कोइ सरकारे लाभ और छुट प्राप्त नहीं हो सकते है| हम समाज और देश के विकास में तभी भागीदार बन सकते है| जब हम इमानदारी पूर्वक अपना  योगदान अपने कार्य, समाज और देश को देंगे तो हमें इसका प्रतिष्ठापूर्वक सम्मान भी प्राप्त होगा|


जब होता जब हम इसे खो देते है|
हर बड़े की शुरुवात छोटे से ही होती है|

४. स्वास्थ: 

                हमारा स्वास्थ ही हमारी सबसे बड़ी दौलत है, पर इसकी कीमत का अहसाह हमें नहीं होता|

            मनुष्य की सफलता का राज उसका स्वास्थ है, अत: सबसे पहले उसे अपने स्वास्थ का ख्याल रखना चाहिए, फिर उसे अपने पारिवारिक जिम्मेदारी का निर्वहन करना चाहिए जिसमे भी परिवार का स्वास्थ ही सर्वोपरि है| हम धन के पीछे यदि भागते रहे और स्वास्थ ठीक ना होने से हमारा सारा धन दवा और इलाज़ में खर्च कर दे इससे कोई लाभ नहीं है| स्वास्थ के बिना संसार में सब कुछ ब्यर्थ है|

५. परिवार: 

          दुनिया के लिए आप एक परिवार के मुखिया के साथ मात्र बय्क्ति है, पर परिवार के लिए आप पुरी दुनिया है| जिस प्रकार धुप जलाने से पुरे घर में इसकी खुशबु फ़ैल जाती है, उसी प्रकार परिवार का यदि एक ब्यक्ति  शिक्षित बन जाय, भगवान् के भक्ति में लीं हो जाय तो इसका असर पुरे परिवार पर पड़ता है| परिवार हमारे लिए सिर्फ महत्वपूर्ण ही नहीं यह माने तो सब कुछ है| आज के परिवेश में संयुक्त का चलन लगभग समाप्त हो रहा है, जो की परिवार के स्वस्थ परम्परा के विपरीत है| संयुक्त परिवार की बहुत से फायदे थे| जिसमे सदस्यों को एक दुसरे के प्रति प्रेम भाव रहा करता था| परिवार का मुखिया ही परिवार का मुख संचालक हुवा करता था, जिससे उसके दिशा निर्देश में परिवार संचालित रहता था| जिससे सदस्यों को परिवार की निर्भरता कम रहती थी, वह अपने कार्य और कैरियर के प्रति सजग और स्वतंत्र रहते हुए अपने लक्ष्य को आसानी से प्राप्त कर सकता था|

परिवार प्यार का दुसरा नाम है,  अपने परिवार को समय दीजिये|
इससे प्रेम और  विश्वास का रिश्ता मजबूत बनता है|
याद रखना कही जिन्दगी की भाग-दौड़ में परिवार पीछे ना छुट जाय||

६. सामाजिक परिवेश: 

              स्वीकार करने की हिम्मत और सुधार करने की नियत हो तो इन्शान बहुत कुछ कर सकता है| सामाजिक लोग बुरे नहीं होते पर जब वो हमारे मतलब के नहीं होए तो हमें अछे नहीं लगते है| जिस तरह परिवार के बिना ब्यक्ति अधुरा है, उसी प्रकार समाज के बिना ब्यक्ति/परिवार भी अधुरा है| ब्यक्ति के स्वभाव अनुसार उसे हर ख़ुशी और गम को प्रदर्शन करने की इच्छा बनी रहती है, जिससे उसे मानसिक सुख की प्राप्ति होती है| हम अपने शुख और दुःख को बिना अपने पास अपनो के ब्यक्त नहीं कर सकते है, ओ बिना समाज के संभव नहीं है| समाज की आवश्यकता एक बार सिमित रूप से ख़ुशी के लिए हो भी सकती है, पर गम को आप बिना समाज के नहीं बाँट सकते है| समाज के निर्माण में यह आवश्यक है की हम अछे और बुरे की पहचान रख्खे| जब हम किसी के प्रति प्रेम और समर्पण का भाव रखते है तो धीरे धीरे यही प्रेम और सर्मपण उन सभी से मिलकर एक समाज का निर्माण कर देते है| जिसका मूल्य हमरे सामजिक परिवेश में हमें मिलता है| समाज के बीच रहने और मिलने जुलने से हम बहुत से चोजो का ज्ञान बिना किसी अतिरिक्त  परिश्रम और कोशिश के पा लेते है| 

जिंदगी जीने के दो तरीके है,एक जो पसंद है, उसे हाशिल करना सीख ले|
दुसरा जो हासिल किया है, उसे प्राप्त करना सीख ले||

७. सामाजिक संवाद: 

           प्रेरणा वह है जो आप को काम करने के लिए प्रेरित करती है, और आदत वह है जो आप की निरन्तरता प्रदान करती है| अगर आप सकराताम्क बोलेंगे- सोचेंगे तो होगा भी वैसा ही। सकराताम्क लोगों के साथ रहने से हमारे आस- पास सकराताम्क किरणें बनी रहती हैं। दरअसल हमारे पास दो तरह के बीज होते हैं, सकारात्मक विचार  और नकारात्मक विचार  जो आगे चलकर हमारे नजरिये और व्यवहार रूपी पेड़ का निर्धारण करते हैं। हम जैसा सोचते हैं, वैसा ही बन जाते हैं। इसलिए कहा जाता है कि जैसे हमारे विचार होते हैं, वैसा ही हमारा आचरण होता है। हमारे विचारों पर हमारा स्वयं का नियंत्रण होता है इसलिए यह हमें ही तय करना होता है कि हमें सकारात्मक सोचना है या नकारात्मक। यह पूरी तरह से हम पर निर्भर करता है कि हम अपने दिमाग रूपी जमीन में कौन- सा बीज बोना चाहते हैं। थोड़ी सी समझदारी से हम कांटेदार पेड़ को महकते फूलों के पेड़ में बदल सकते हैं। अगर आपको अपने जीवन में सफल होना है तो आपको आज से ही अपनी सोच सकारात्मक बनानी होगी।

भलाई करना कर्तब्य नहीं, आनंद है, क्योकि यह स्वास्थ और सुख में ब्रुधि करता है|
जिंदगी जीने के दो तरीके हैएक जो पसंद है उसे हाशिल करना सीख ले
दुसरा जो हासिल किया है उसे प्राप्त करना सीख ले||


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